RAHUL PANDEY
सरकार (Government) ने गरीब बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) लागू किया। गरीबों ने सोचा कि अब उनके बच्चे भी बडे स्कूलों में दाखिला ले सकेंगे। लेकिन एक दफा फिर इन निजी स्कूलों वालों ने खेला कर दिया। इस पूरे खेल का संज्ञान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (State Commission for Protection of Child Rights) ने लिया है। प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा का स्कूल अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट) के अंतर्गत गरीब बच्चों को दाखिला देने से बचने के लिए नया रास्ता ढूढ़ लिया है। ऐसे कई स्कूलों को बंद दिखा दिया गया है, जो अभी भी संचालित हैं। आयोग से शिकायत की गई है कि बंद दिखाए जा रहे कई स्कूल अभी भी संचालित हैं। ये गरीब बच्चों के प्रवेश से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं। कानपुर (Kanpur) नगर में 181, गाजियाबाद में 97, आगरा में 267, गौतमबुद्धनगर में 81, गोरखपुर में 142 व बरेली में 90 स्कूल बंद दिखाए जा रहे हैं। प्रमुख सचिव बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा दीपक कुमार (Principal Secretary Basic and Secondary Education Deepak Kumar) बताते हैं कि आयोग का पत्र अभी संज्ञान में नहीं है। यदि ऐसा कोई पत्र आया होगा तो आवश्यक कार्रवाई कर आयोग को सूचित करेंगे।
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दर-दर भटकना पड़ रहा
आयोग ने माना है कि बंद दिखाए जा रहे कई विद्यालय अभी भी संचालित हैं। ऐसी समस्या पूरे प्रदेश में बनी हुई है। इसकी वजह से आरटीई के दायरे वाली छात्र-छात्राओं को आवंटित विद्यालयों में प्रवेश के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। आयोग ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को प्रदेश के समस्त जिलों में ऐसे बंद दिखाए गए स्कूलों की जांच कराने का आदेश दिया है। प्रदेश के आरटीई पोर्टल पर राजधानी लखनऊ के 2053 विद्यालयों का ब्योरा उपलब्ध है। इनमें से शहरी क्षेत्र के 1692 विद्यालयों में से 220 को बंद दिखाया जा रहा है।
स्कूलों की जांच का आदेश
आयोग की सदस्य डा. शुचिता चतुर्वेदी ने लखनऊ (Lucknow) की स्थिति का उल्लेख करते हुए प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को आरटीई की वेबसाइट पर बंद दिखाए जा रहे (स्कूल क्लोज्ड) समस्त विद्यालयों की स्थलीय जांच कराने का निर्देश दिया है। उन्होंने ऐसे स्कूलों की सही स्थिति को वेबसाइट प्रदर्शित कराने को कहा है। डा. चतुर्वेदी ने प्रमुख सचिव को की गई कार्रवाई की जानकारी एक सप्ताह में आयोग को उपलब्ध कराने को कहा है, ताकि बच्चों का नियमानुसार प्रवेश हो सके।
बाध्यकारी है आरटीई एक्ट
आरटीई एक्ट के तहत निजी स्कूलों को अपनी कक्षा की कुल सीटों का एक-चौथाई आर्थिक रूप से कमज़ोर (ईडब्ल्यूएस) बच्चों के लिये आरक्षित रखना अनिवार्य है। एक्ट के तहत प्री-नर्सरी व कक्षा-एक में प्रवेश लिया जाता है। सरकार ने इस व्यवस्था को ठीक से लागू करने के लिए एक आरटीई-यूपी पोर्टल बनाया है। इस पर निजी स्कूलों को जुड़ना अनिवार्य है। इसी पोर्टल पर दर्ज तमाम स्कूल बंद बताए जा रहे हैं।
फीस और कापी-किताब का खर्च देती है सरकार
प्रदेश सरकार आरटीई में दाखिला पाने वाले अलाभित समूह व दुर्बल आय वर्ग के छात्र-छात्राओं को पाठ्य पुस्तकों, अभ्यास पुस्तिकाओं, व यूनिफार्म के लिए प्रति विद्यार्थी 5000 रुपये देती है। स्कूलों को 450 रुपये प्रतिमाह की दर से 5400 रुपये वार्षिक भुगतान किया जाता है।
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