ऐसे संगीत के करीब आए थे #Naushad
#Naushad साहब ने अपने फिल्मीं करियर के दौरान एक से बढ़कर एक शानदार नगमे तैयार किए. एक दौर ऐसा था जब नौशाद साहब की धुन और मोहम्मद रफी की आवाज में गाना बनता था तो वो सफलता की गारंटी रहता था. रफी के अलावा सुरैया और लता मंगेशकर की आवाज को उन्होंने नई बुलंदी दी. उनकी धुनों में भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय संगीत की आत्मा बसती थी. नौशाद की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से.
शास्त्रीय संगीत के उस्ताद थे
नौशाद साहब शास्त्रीय संगीत के उस्ताद थे. संगीत का मोह उन्हें मुंबई खींच लाया था. जब उन्हें कामयाबी की राह मिली तो उन्होंने अपनी शर्तों पर कामयाबी की मंजिलें तय कीं. शास्त्रीय और लोक संगीत से जिंदगी भर नौशाद साहब का नाता बना रहा.
नौशाद साहब लखनऊ से थे. मामा की म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स की दुकान थी, यहीं उनका नाता संगीत से जुड़ गया. म्यूजिक जुनून बनने लगा तो पिता ने कहा, या घर चुन लो या फिर म्यूजिक. नौशाद साहब ने म्यूजिक चुना और 17 साल की उम्र में लखनऊ से कूच कर गए मुंबई के लिए.
फिल्मी करियर की शुरुआत की
1938 में उन्होंने बागवान फिल्म में एक गाना कंपोज किया और अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने नई दुनिया, संजोग, गीत, मेला, अंदाज और बैजू बावरा जैसी फिल्मों में सुपरहिट गीत दिए.
नौशाद साहब ने अपनी जिंदगी में कई गायकों को मौका दिया, कई गायकों की आवाज तराशी. सुरों की मलिका लता मंगेशकर को भी नौशाद ने बहुत कुछ सिखाया.