हिंदी में वह शक्ति है कि वह अपने माध्यम से भारत को जोड़ सके
#HindiDiwas : 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है. इस दिन स्कूलों में कहानी, कविताओं, निबंध के कार्यक्रम होते हैं, कई शिक्षक और छात्र-छात्राएं भाषण देते हैं. सोशल मीडिया पर हिंदी में शायरी और कोट्स शेयर किया जाता है. वहीं, लोग मोबाइल पर भी बाकि त्योहारों की तरह स्टेटस अपडेट रखते हैं. बता दें, आजादी मिलने के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया था. इसलिए हर साल 14 September को हिंदी दिवस मनाया जाता है.
हिंदी की सामर्थ्य को गांधी ने भी समझा और नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने भी। आचार्य बिनोवा भावे ने कहा था कि यदि मैंर्ने हिंदी का सहारा न लिया होता तो कश्मीर से कन्याकुमारी और असम से केरल तक के गांव-गांव में जाकर मैं भूदान, ग्राम-दान का संदेश जनता तक न पहुंचा पाता।
राष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त किया
हिंदी ने राष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त किया। उसे यह भी बोध रहा कि भारत का विकास और राष्ट्रीय एकता की रक्षा प्रादेशिक भाषाओं के पूर्ण विकास से ही संभव है। हिंदी में वह शक्ति है कि वह अपने माध्यम से भारत को जोड़ सके। हिंदी को अपना स्थान अभी भी हासिल करना है। उसे इस मिथ्या धारणा को भी तोड़ना है कि विकास की भाषा तो अंग्रेजी ही है। अगर अंग्रेजी सचमुच विकास की भाषा होती तो पहले जापान और फिर जर्मनी और चीन ने अपनी भाषा में चमत्कारिक प्रगति न हासिल की होती।
सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा
हाल के समय में हिंदी ने उल्लेखनीय प्रगति और पहुंच स्थापित की है, लेकिन केवल इतने से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि वह देश की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा बन गई है। दी ज्ञान अर्जन की, विज्ञान एवं तकनीक की और सरकारी एवं गैर सरकारी कामकाज यानी रोजगार की सक्षम भाषा भी बननी चाहिए। जब ऐसा होगा तभी उसे अपना मुकाम हासिल होगा। इस मुकाम को हासिल करने में हिंदी को गैर हिंदी भाषियों का सहयोग और समर्थन चाहिए होगा।
रहना होगा सतर्क
गैर-हिंदी भाषियों में हिंदी को लेकर किसी तरह की आशंका उपजने न पाए, इसके लिए हिंदी प्रेमियों को सतर्क रहना होगा और इस क्रम में उन हिंदीतरभाषियों का स्मरण करना होगा जिन्होंने विभिन्न कालखंडों में हिंदी के विस्तार में योगदान किया। इसे गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों के उन लोगों को भी स्मरण रखना चाहिए जो रह-रहकर किसी न किसी बहाने हिंदी का विरोध करने के लिए आगे आ जाते हैैं।
पहला एमए होने का गौरव
हिंदी में पहला एमए होने का गौरव नलिनी मोहन सान्याल नामक एक बांग्लाभाषी ने पाया। ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि देश में पहली बार 1919 में हिंदी में एमए की पढ़ाई कलकत्ता विश्वविद्यालय में तत्कालीन कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने शुरू कराई। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के हिंदी प्रेम को देखते हुए ही 20 दिसंबर, 1928 को कलकत्ता में आयोजित राष्ट्रभाषा सम्मेलन की स्वागत समिति का अध्यक्ष उन्हें बनाया गया। वहां उन्होंने हिंदी के पक्ष में ऐतिहासिक भाषण हिंदी में ही दिया। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी को 1930 में हिंदी शिक्षक नियुक्त किया और 1940 में हिंदी भवन की स्थापना की। इसी तरह पूर्वी भारत, मध्य भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत के हिंदीतरभाषियों ने विभिन्न कालखंडों में हिंदी को सींचने का महत्वपूर्ण काम किया।