कई समस्याओं का एक समाधान हैं मां की पूजा
नवरात्रि (Navratri) के छठे दिन मां दुर्गा के स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो कि इस बार 4 अक्टूबर को है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शादी में आ रही बाधा दूर होती है और भगवान बृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह का योग बनाते हैं. यह भी कहा जाता है कि अगर सच्चे मन से मां की पूजा की जाए तो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. मां कात्यायनी की उपासना से रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं.
जानिए कौन हैं मां कात्यायनी
मान्यता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है. मां कात्यायनी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी. कहते हैं कि मां कात्यायनी ने ही अत्याचारी राक्षस महिषाषुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था.
रूप
- मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है.
- इनकी चार भुजाएं हैं.
- मां कात्यायनी के दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है.
- बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है.
- मां कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं.
पसंदीदा रंग और भोग
मां कात्यायनी को पसंदीदा रंग लाल है. मान्यता है कि शहद का भोग पाकर वह बेहद प्रसन्न होती हैं. नवरात्रि के छठे दिन पूजा करते वक्त मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है.
पूजा विधि
- नवरात्रि के छठे दिन यानी कि षष्ठी को स्नान कर लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें.
- सबसे पहले घर के पूजा स्थान नया मंदिर में देवी कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
- अब गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें.
- अब मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें
- अब हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्यान करें.
- इसके बाद उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और शहद अर्पित करें.
- धूप-दीपक से मां की आरती उतारें.
- आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें.
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
आरती
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी
जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा
वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है
यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते
हर मंदिर में भगत हैं कहते
कत्यानी रक्षक काया की
ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली
अपना नाम जपाने वाली
बृहस्पतिवार को पूजा करिए
ध्यान कात्यायनी का धरिए
हर संकट को दूर करेगी
भंडारे भरपूर करेगी
जो भी मां को ‘चमन’ पुकारे
कात्यायनी सब कष्ट निवारे