शरद पूर्णिमा पर्व रास पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहलाता है
ऋतु परिवर्तन को इंगित करने वाली और स्वास्थ्य समृद्धि की प्रतीक है शरद पूर्णिमा। दक्षिण भारत में इसे ही कोजागरी पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा पर्व रास पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहलाता है।
इसे आश्विन मास की पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। महर्षि अरविंद महारास को दर्शन से जोड़ते हैं और उसे अतिमानस की संज्ञा देते हैं।
अध्यात्म के दृष्टिकोण से यदि हम देखें, तो महारास अलौकिक प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ओ
खीर का महत्व
यह भी माना जाता है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है। जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा के उज्जवल किरणों से आलोकित हुई खीर का रसास्वादन करते हैं, मान्यता है कि उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति का वरदान भी मिल जाता है।
कब है शरद पूर्णिमा
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. इस साल शरद पूर्णिमा का पर्व 13 अक्टूबर, रविवार को है.
शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 13 अक्टूबर 2019 की शाम 05 बजकर 26 मिनट
व्रत विधि
- पूर्णिमा के दिन सुबह में इष्ट देव का पूजन करना चाहिए
- इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए
- ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए
- लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है
- रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए
- मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है
- रात 12 बजे के बाद अपने परिजनों में खीर का प्रसाद बांटें.