अपनी सामर्थ्यनुसार किसी जरूरतमंद की मदद
दान का शाब्दिक अर्थ है ‘देने की क्रिया‘। जब हम अपनी सामर्थ्यनुसार किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो वह दान कहलाता है। दान में दातापन का भाव नहीं होना चाहिए। कहा भी जाता है कि एक हाथ से यूं दान करो कि दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलें।
देहदान का भी प्रचलन हो चला है
हिंदू धर्म में दान का अत्यधिक महत्व बताया गया है, यह सिर्फ हमारा रिवाज व परंपरा मात्र नहीं है बल्कि दान करने के पीछे हमारे हर धार्मिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में महत्वपूर्ण उद्देश्य बताए गए हैं। कर्ण, दधीचि तथा राजा हरिशचंद्र जैसे परमदानी भारत में ही हुए हैं, जिन्होंने दुनिया के सामने दान की मिसाल कायम की। पुराणों में भी अनेक तरह के दानों का उल्लेख मिलता है जिनमें अन्नदान, विद्यादान, अभयदान तथा धनदान को श्रेष्ठ माना गया है। अब तो भारत में देहदान का भी प्रचलन हो चला है।
नहीं होती है कोई कमी
- प्रकृति सबसे अच्छी शिक्षक है जो हमें देना सिखाती है।
- सूर्य, फूल, पेड़ , नदियां, धरती सब कुछ न कुछ देते हैं, फिर भी न सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल और न ही नदियों का जल।
- इसलिए कहा जाता है कि दान एक हाथ से देने पर अनेक हाथों से लौटकर हमारे पास वापस आ जाता है। वेदों और पुराणों में भी कहा गया है कि दान देने से हमारे अंदर परिगृह (जमा करने) की प्रवृत्ति नहीं आती।
- मन में उदारता का भाव रहने से विचारों में शुद्धता आती है। मोह तथा लालच नहीं रहता।
पुण्य प्राप्त होता है
शास्त्रों में दान को विशेष दर्जा इसलिए भी दिया गया है कि इस पुण्य कार्य से समाज में समानता का भाव बना रहता है और जरूरतमंद व्यक्ति को भी जीवन के लिए उपयोगी चीजें प्राप्त हो जाती हैं। अन्न, जल, घोड़ा, गाय, वस्त्र, शय्या, छत्र और आसन इन आठ वस्तुओं का दान हमारे पूरे जीवन को शुभ फल देता है। किसी रोगी की सेवा करना, देवताओं का पूजन और ज्ञानी लोगों की सेवा करना, ये तीनों काम भी गोदान के समान पुण्य देने वाले होते हैं। इसी तरह दीन, हीन, निर्धन, अनाथ, दिव्यांग तथा रोगी मनुष्य की सेवा के लिए जो धन दिया जाता है, उससे भी बहुत पुण्य प्राप्त होता है।
शुभ काम में लगाना चाहिए
कहा भी गया है कि मनुष्य को अपने अर्जित किए हुए धन का दसवां भाग किसी शुभ काम में लगाना चाहिए। इसमें गोशाला में दान, गरीब बच्चों की शिक्षा का प्रबंध या गरीब व्यक्तियों को भोजन खिलाना शामिल है। दान देना जहां हमारे विचारों एवं हमारे व्यक्तित्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालता है।