बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक में हर वर्ष होलिका दहन
इस वर्ष होलिका दहन 09 मार्च दिन सोमवार को किया जाएगा। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक में हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है। होलिका दहन से जुड़ी भक्त प्रह्लाद की कथा हम सभी ने पढ़ी है, लेकिन कुछ ऐसी भी कथाएं है, जो होलिका दहन से जुड़ी हैं और संभवत: हम उसे नहीं जानते हैं।
आइए जानते हैं कि भक्त प्रह्लाद के अलावा और कौन सी कथाएं होलिका दहन से जुड़ी हुई हैं-
पूतना वध की कथा
मथुरा के राजा कंस को अपने भांजे श्रीकृष्ण के हाथों मारे जाने का भय था। इस वजह से कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना नाम की एक राक्षसी को गोकुल भेजा था। उसने बाल श्रीकृष्ण को मारने के लिए स्तनपान कराने की योजना बनाई थी, लेकिन वह मूर्ख थी। जो पूरे जगत के पालनहार हैं, उनसे यह बात कैसे छिप सकती थी।
जब वह बाल श्रीकृष्ण को स्तनपान कराने लगी, तभी उन्होंने पूतना का वध कर दिया। पूतना वध के दिन पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद से ही हर वर्ष इस दिन होलिका दहन का आयोजन होने लगा।
शिव और कामदेव की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वती जी भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन भोलेनाथ तपस्या में इतने लीन थे कि उनका ध्यान माता पार्वती की ओर नहीं गया। तब पार्वती जी ने प्रेम के देवता कामदेव से मदद ली। कामदेव ने भोलेनाथ पर पुष्प बाण से प्रहार किया, ताकि भगवान शिव प्रेम के वशीभूत हो जाएं।
कामदेव के कारण भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने क्रोध के वशीभूत होकर कामदेव को भस्म कर दिया। यह देखकर कामदेव की पत्नी रति रोने लगीं और महादेव से अपने पति के प्राण लौटाने की विनती करने लगीं। जब भगवान शिव शांत हुए तो उन्होंने कामदेव को दोबारा जीवन दे दिया।जिस दिन कामदेव भस्म हुए थे, उस दिन होलिका दहन किया जाने लगा। उसके अगले दिन उनको पुनर्जीवन मिला था, इसकी खुशी में रंगों का त्योहार होली मनाई जाने लगी।
ढुण्ढा राक्षसी वध की कथा
भविष्यपुराण में बताया गया है कि सतयुग में ढुण्ढा राक्षसी ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिया। इसके बाद से वह छोटे बालकों को परेशान करने लगी। तब वशिष्ठ ऋषि ने महाराज रघु को इसके निराकरण का उपाय बताया।
उन्होंने राजा से कहा कि सूखी लकड़ी एवं उप्पलों आदि को एकत्र किया जाए तथा रक्षोघ्न मंत्रों से हवन करके उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाए। फिर किल-किल शब्द का उच्चारण करते हुए ताली बजाई जाए। इसके उपरन्त अग्नि की तीन परिक्रमा की जाए। वहां मौजूद लोग दान दें तथा हास्य-परिहास करें। ऐसा करने से ही ढुण्ढा भस्मीभूत होगी।
वशिष्ठ ऋषि के बताए अनुसार उपाय किया, जिससे ढुण्ढा राक्षसी का अंत हो गया और उसके दोष शान्त हो गए। इसके बाद से ही होलिका दहन प्रचलन में आया।