इससे शुभता में वृद्धि होने के साथ घर और आसपास में सकारात्मक ऊर्जा
यह दिन महाष्टमी या दुर्गाष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। मां दुर्गा की आराधना को समर्पित नवरात्रि में हवन का विशेष महत्व होता है। विशेष तौर पर महाष्टमी या महानवमी के दिन मां दुर्गा के लिए हवन किया जाता है। इससे शुभता में वृद्धि होने के साथ घर और आसपास में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
आहुति देने से वातावरण स्वच्छ होता है
वातावरण में शुद्धता की मात्रा बढ़ती है। हवन सामग्री में जो औषधीय सामग्री उपयोग किए जाते हैं, उनकी आहुति देने से वातावरण स्वच्छ होता है। इस कारण से अक्सर पूजा अनुष्ठान में हवन करने का विधान है। यह एक वैदिक कर्मकांड है।
देश में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन है। तो आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। आप घर पर स्वयं भी हवन कर सकते हैं। हम आपको हवन साम्रगी और हवन की आसान विधि की जानकारी दे रहे हैं।
महाष्टमी और महानवमी की हवन साम्रगी
एक सूखा नारियल या गोला, कलावा या लाल रंग का कपड़ा और एक हवन कुंड। इसके अतिरिक्त आम की लकड़ी, तना और पत्ता, चंदन की लकड़ी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़, पीपल का तना और छाल, बेल, नीम, पलाश, गूलर की छाल, कर्पूर, तिल, चावल, लौंग, गाय का घी, गुग्गल, लोभान, इलायची, शक्कर और जौ।
विधि
आज महानवमी की पूजा-अर्चना के बाद हवन कुंड को पूजा स्थल पर ही एक साफ स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद सभी हवन सामग्री को एक बड़े पात्र में ठीक से मिला लें। अब आम की सूखी लकड़ी को कर्पूर की मदद से जला लें। इसके बाद अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाए तो नीचे दिए गए मंत्रों से बारी बारी से आहुति देना शुरू करें।
ओम आग्नेय नम: स्वाहा
ओम गणेशाय नम: स्वाहा
ओम गौरियाय नम: स्वाहा
ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा
ओम दुर्गाय नम: स्वाहा
ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा
ओम हनुमते नम: स्वाहा
ओम भैरवाय नम: स्वाहा
ओम कुल देवताय नम: स्वाहा
ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा
ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा
ओम विष्णुवे नम: स्वाहा
ओम शिवाय नम: स्वाहा
ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।