दुर्गा मां की उत्पति के पीछे भी एक पौराणिक कथा छिपी है…
इस कथा के अनुसार, जब असुरों का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया था तब इस परेशानी से निजात पाने के लिए देवतागण ब्रह्माजी के पास गए। देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वरदान मिला है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी। तब सभी देवताओं ने एक साथ हो देवी के इन रूपों को प्रकट किया। देवी के विभिन्न अंग देवताओं के शरीर से निकले तेज से ही बने।
देवी का मुख भोलेनाथ के तेज से बना। उनके केश यमराज के तेज से, भुजाएं विष्णु जी के तेज से, सत्न, चंद्रमा के तेज से, कमर इंद्र देव के तेज से, जंघा वरुण देव के तेज से, नितंब पृथ्वी के तेज से, चरण ब्रह्मा के तेज से, दोनों पैरों की ऊंगलियां सूर्य के तेज से, दांत प्रजापति के तेज से, दोनों नेत्र अग्नि के तेज से, भौंहें संध्या के तेज से, कान वायु के तेज से बने। बाकी के अंग भी देवताओं के तेज से ही बने।
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फिर शिवजी ने अपना त्रिशूल उस महाशक्ति को दिया। कमल का फूल लक्ष्मीजी ने, चक्र विष्णु जी ने, बाणों से भरे तरकश अग्नि ने, स्फटिक मणियों की माला प्रजापति ने, दिव्य शंख वरुण ने, गदा हनुमानजी ने, मणियों से सुशोभित नाग शेषनागजी ने, वज्र इंद्र ने, धनुष भगवान राम ने, पाश व तीर वरुण देव ने, चारों वेद ब्रह्माजी ने और सवारी के लिए सिंह हिमालय पर्वत ने प्रदान किया।
इसके अलावा समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां मां को प्रदान की। उपरोक्त सभी चीजों को मां ने अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा… आद्य शक्ति हैं। माना जाता है कि इन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी करते हैं।
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