शक्ति की देवी मां दुर्गा, अपने भक्तों की सर्व इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। नवरात्रि (Navratri) के दौरान परम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति के लिए नौ दिन तक उनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस बार नवरात्रि एक महीने की देरी से आई है। पितृ पक्ष की समाप्ति 17 सितंबर 2020 को हुआ और नवरात्रि 17 अक्टूबर 2020 से हो रही है। जानकारी के अनुसार करीब 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं।
आइए जानते हैं नवरात्रि की पूजा विधि के बारे में…
इस तरह करें पूजा:
नवरात्रि (Navratri) में नौ दिनों तक दुर्गा मां के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही व्रत भी किया जाता है। कई लोग पूरी नवरात्रि अखंड ज्योत जलाते हैं। आइए जानते हैं कैसे करें नवरात्रि (Navratri) में पूजा।
प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों को कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। फिर स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
नवरात्रि (Navratri) से एक दिन पहले मंदिर की साफ-सफाई अच्छे से कर लें और सभी समान सुसज्जित कर लें।
नवरात्रि के समय हर दिन का एक रंग तय होता है। मान्यता है कि इन रंगों का उपयोग करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- प्रतिपदा- पीला
- द्वितीया- हरा
- तृतीया- भूरा
- चतुर्थी- नारंगी
- पंचमी- सफेद
- षष्टी- लाल
- सप्तमी- नीला
- अष्टमी- गुलाबी
- नवमी- बैंगनी
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#NAVRATRI : कलश स्थापना का क्या है शुभ मुहूर्त? इन बातों का रखें ध्यान
नवरात्रि पूजन के लिए माता की मूर्ति या तस्वीर पूजन स्थल पर स्थापित अवश्य कर ले। मां को लाल चुनरी, वस्त्र आदि पहनाएं। पूजा स्थल को रंग-बिरंगे फूलों से सजाएं। दुर्गा मां को भी सुंदर-सुंदर पुष्प अर्पित करें जिसमें लाल रंग के पुष्प जरूर शामिल करें।
इसके बाद ऋतु फल, मिठाइयां आदि मां जगदम्बे को अर्पित करें।जल से भरा हुआ पीतल, चांदी, तांबा या मिट्टी का कलश लें। कलश(घट) मूर्ति की दाईं ओर स्थापित करना चाहिए।
जहां कलश स्थापित करना है वहां पर किसी बर्तन के अन्दर मिट्टी भर लें या फिर जमीन पर ही मिट्टी का ढेर बना दें। यह ढेर इस तरह बनाएं कि जब उस पर कलश रखा जाए तब उसके आस-पास कुछ स्थान शेष रह जाए।
कलश के ऊपर रोली अथवा कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं। फिर कलश की गर्दन पर मौली(कलावा) बांधें। इसके बाद उसमे थोड़ा गंगाजल डालकर बाकि शुद्ध पेयजल से भर दें।
कलश के अंदर थोड़े से अक्षत (चावल), 2-4 दूर्वा घास, साबुत सुपारी और 1 या दो रुपये का सिक्का डाल दें। इसे चारो ओर से आम के 4-5 पत्ते लगाकर मिट्टी या धातु के बने ढक्कन से अच्छे से ढक दें।
अब ढक्कन पर भी स्वस्तिक बनाएं। इसमें थोड़े-से चावल डालकर एक पानी वाला नारियल रखें। यह नारियल लाल रंग की चुनरी से लिपटा होना चाहिए और इस पर तिलक और स्वास्तिक का चिन्ह बना होना चाहिए।
इस नारियल को चावलों से भरे ढक्कन के ऊपर रख दें। ध्यान रखने वाली बात यह है कि नारियल का मुख हमेशा अपनी ओर ही रखें। दीपक का मुख पूर्व दिशा की और रखें।
अब सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। फिर मां भगवती का पूजन करें।
मां के बीज बीज मंत्र ॐ एम् ह्रीं क्लिं चामुण्डायै विच्चे बोलकर पूजा का आरम्भ करें।
मां दुर्गा की प्रार्थना कर सबसे पहले कवच पाठ करें। फिर अर्गला, कीलक और रात्रि सूक्त का पाठ पढ़ें।
इनका पाठ कर लेने पर दुर्गा सप्तसती व श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करें। अंत में भगवान गणेश की आरती के साथ मां अम्बे जी की आरती या दुर्गा माता की आरती करें। हर दिन एक कन्या का पूजन करें।
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