पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) जस्टिस अमोल रतन सिंह ने एक अहम फैसले में कहा कि बच्चे पर पहला अधिकार मां का होता है। एनआरआई दंपती ने बच्चे को गोद लेने के लिए जो दस्तावेज तैयार किए थे वह भी सही नहीं है। एनआरआई (NRI) दंपती ने जब बच्चा गोद लिया था तब वह मौजूद नहीं थे। उनकी जगह उनके रिश्तेदार ने बच्चा गोद लिया और जब एनआरआई दंपती भारत आए और गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए तो बच्चे की मां वहां मौजूद नहीं थी।
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दरअसल पति की मौत के बाद मानसिक दबाव में तीन माह के बच्चे को मां ने एनआरआई दंपती को सौंप दिया था। लेकिन अब मां द्वारा उसको वापस पाने की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने बच्चे को वापस मां को सौंपने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट (High Court) ने मामले में एडवोकेट अनिल मल्होत्रा का सहयोग लिया उनकी राय के बाद हाईकोर्ट ने गोद लेने के दस्तावेजों पर संशय जताते हुए इसे रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे को गोद देने का फैसला मां ने दबाव में लिया था क्योंकि कुछ समय पहले ही उसके पति की मृत्यु हुई थी और वह मानसिक तौर पर स्थिर नहीं थी। पति की मृत्यु के बाद अपने और अपने नवजात के भरण-पोषण की चिंता के दबाव में उसने बच्चा गोद दिया था। हाईकोर्ट ने मां को दो सप्ताह में बच्चा वापस सौंपने का आदेश दिया है।
एक महिला को पति की मृत्यु के बाद बेटा पैदा हुआ था
Chandigarh की एक महिला को पति की मृत्यु के बाद बेटा पैदा हुआ था। उस पर परिवार का दबाव था कि वह पति की मृत्यु के बाद अपना और बच्चे का देखभाल सही ढंग से नहीं कर पाएगी। उसे अपना बच्चा किसी को गोद दे देना चाहिए। इसके बाद एनआरआई दंपती से बात हुई।
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उनकी गैर मौजूदगी में गत वर्ष 5 सितंबर को पटियाला में बच्चा उनके रिश्तेदार को सौंप दिया गया और मां के हस्ताक्षर ले लिए गए। गोद लेने के दस्तावेज 3 दिसंबर को तैयार हुए जब बच्चे की मां वहां नहीं थी। इसके बाद बच्चे की मां ने पहले पुलिस को शिकायत दी और पुलिस के कार्रवाई नहीं करने पर बच्चे को वापस लेने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।