#DurgaPuja : आज षष्ठी तिथि है और आज के दिन से दुर्गा पूजा (DurgaPuja) शुरू हो जाती है। 5 दिन तक यह त्यौहार मनाया जाता है। इससे मां प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं।
आइए जानते हैं दुर्गा पूजा की कथा, मंत्र और आरती…
दुर्गा पूजा कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यराज महिषासुर को ब्रह्मदेव ने वरदान दिया था कि उस पर कोई भी देवता और दानव विजय प्राप्त नहीं कर पाएगा। इसके परेशान होकर सभी देवगण त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास गए। लेकिन वे सभी भी महिषासुर से हार गए। जब किसी को कोई उपाय नहीं मिला तो सभी ने दुर्गा मां का सृजन किया। इन्हें शक्ति और पार्वती के नाम से जाना गया। मां ने महिषासुर पर आक्रमण किया। लगातार नौ दिन तक युद्ध के बाद और दसवें दिन महिषासुर का वध किया। इसी के चलते हिंदू धर्म में दस दिनों तक दुर्गा पूजा मनाई जाती है। वहीं, दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। मां का नाम महिषासुर मर्दिनी, महिषासुर के मर्दन के कारण ही पड़ा।
दुर्गा मां के 9 स्वरूपों के ध्यान मंत्र:
मां शैलपुत्री ध्यान मंत्र: वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां ब्रह्मचारिणी ध्यान मंत्र: दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
मां चंद्रघंटा ध्यान मंत्र: पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसीदम तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
मां कुष्माण्डा ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामार्थे चंद्रार्घ्कृत शेखराम, सिंहरुढ़ा अष्टभुजा कुष्मांडा यशस्वनिम.
मां स्कंदमाता ध्यान मंत्र: सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.
मां कात्यायनी ध्यान मंत्र: स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्। वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
मां कालरात्रि ध्यान मंत्र: करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
मां गौरी ध्यान मंत्र: पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
मां सिद्धदात्री ध्यान मंत्र: स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
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आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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