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Navratri : महाशक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि (Navratri) । तीन देवियों – पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरूपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरूपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरूपों की पूजा करते हैं। Navratri 2024
ज्योतिषाचार्य अनुसार दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है। इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानवों से लोहा लिया इसका वर्णन आता है। यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानि नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं। साल में दो बार आश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत में नवरात्र उत्सव का माहौल होता है। सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोक का पाठ को पढ़ने से सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।
सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।। शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।। सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।।
ब्रह्मा जी ने किसे दिए थे ये गुप्त मंत्र
वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रहमा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रहमा जी ने इस प्रकार से किया है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।।
उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने देव दानव युद्ध में विशेष भूमिका निभाई है इनकी सम्पूर्ण कथा देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में लिखित है। शिव पुराण में भी इन दुर्गाओं के उत्पन्न होने की कथा का वर्णन आता है कि कैसे हिमालय राज की पुत्री पार्वती ने अपने भक्तों को सुरक्षित रखने के लिए तथा धरती आकाश पाताल में सुख शान्ति स्थापित करने के लिए दानवों राक्षसों और आतंक फैलाने वाले तत्वों को नष्ट करने की प्रतीज्ञा की ओर समस्त नवदुर्गाओं को विस्तारित करके उनके 108 रूप धारण करने से तीनों लोकों में दानव और राक्षस साम्राज्य का अन्त किया।इन नौदुर्गाओं में सबसे प्रथम देवी का नाम है शैल पुत्री जिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती है। दूसरी देवी का नाम है ब्रहमचारिणी जिसकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन होती है। तीसरी देवी का नाम है चन्द्रघण्टा जिसकी पूजा नवरात्र के तीसरे दिन होती है। चौथी देवी का नाम है कूष्माण्डा जिसकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन होती है। पांचवी दुर्गा का नाम है स्कन्दमाता जिसकी पूजा नवरात्र के पांचवें दिन होती है। छठी दुर्गा का नाम है कात्यायनी जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है । सातवी दुर्गा का नाम है कालरात्रि जिसकी पूजा नवरात्र के सातवें दिन होती है। आठवीं देवी का नाम है महागौरी जिसकी पूजा नवरात्र के आठवें दिन होती है। नवीं दुर्गा का नाम है सिद्धिदात्री जिसकी पूजा नवरात्र के अन्तिम दिन होती है।
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