क्यों भगवान विष्णु को करना पड़ा था तुलसी से विवाह…
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी (Dev uthani ekadashi) कहा जाता है. इस बार देवउठनी एकादशी बुधवार, 25 नवंबर को है. देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (ekadashi) को जागते हैं.
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शालिग्राम-तुसली विवाह
स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की गई है और कहा गया है कि इसके दर्शन से समस्त तीर्थों का फल प्राप्त होता है. प्रति वर्ष कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं प्रतीक स्वरूप तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह (Tulsi shaligram vivah) करवाती हैं. इस वर्ष गुरुवार, 26 नवंबर को शालिग्राम और तुलसी का विवाह होगा. उसके बाद ही हिंदू धर्म के अनुयायी विवाह आदि शुभ कार्य प्रारंभ करते हैं.
भगवान विष्णु ने क्यों किया था तुलसी से विवाह?
शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी. बिना उसके सतीत्व को भंग किए शंखचूड़ को परास्त कर पाना असंभव था. श्री हरि ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और तब जाकर शिव ने शंखचूड़ का वध किया. वृंदा ने इस छल के लिए श्री हरि को शिला रूप में परिवर्तित हो जाने का शाप दिया. श्री हरि तबसे शिला रूप में भी रहते हैं और उन्हें शालिग्राम कहा जाता है.
इन्ही वृंदा ने अगले जन्म में तुलसी के रूप में पुनः जन्म लिया था. श्री हरि ने वृंदा को आशीर्वाद दिया था कि बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा सम्पूर्ण ही नहीं होगी. जिस प्रकार भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा की जाती है. उसी प्रकार भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है.
शालिग्राम की पूजा का महत्व…
श्रीमद देवी भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है. 10,000 गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त करता है. वैसे भी नित्य शालिग्राम का पूजन भाग्य और जीवन बदल देता है. शालिग्राम का विधि पूर्वक पूजन करने से किसी भी प्रकार की व्याधि और ग्रह बाधा परेशान नहीं करती हैं. शालिग्राम जिस भी घर में तुलसीदल ,शंख और शिवलिंग के साथ रहता रहता है, वहां पर सम्पन्नता रहती ही है.
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