मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव (Kaal Bhairav) का अवतरण हुआ था। इस बार काल भैरव जयंती 7 दिसंबर को पड़ रही है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने ही इनकी नियुक्ति यहां की थी।
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आइए जानते हैं काल भैरव जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा, मंत्र और आरती…
मुहूर्त…
मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। अष्टमी तिथि 7 दिसंबर को शाम 6.47 से आरंभ होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 8 दिसंबर को शाम 5.17 बजे तक होगा। काल भैरव की पूजा रात के समय में ही की जाती है। ऐसे में अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है।
पूजा विधि….
इस दिन स्नानादि से निवृत्त हो भगवान काल भैरव की पूजा करें। इस दिन काले कपड़े धारण करने चाहिए। जिस आसन पर बैठकर पूजा की जाती है उस पर भी काला कपड़ा बिछाएं। पूजा में अक्षत, चंदन, काले तिल, काली उड़द, काले कपड़े, धतुरे के फूल का इस्तेमाल अवश्य करें। काल भैरव भगवान को नीले फूल अर्पित करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन काल भैरव जी को इस दिन शराब का भोग लगाया जाता है। इससे भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। इस दिन जो व्यक्ति काल भैरव का व्रत करता है वो काल कुत्ते को भोजन कराए तो भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। पूजा करते समय काल भैरव मंत्र और आरती भी पढ़नी चाहिए।
काल भैरव मंत्र….
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
अन्य मंत्र…
ॐ कालभैरवाय नम:।
ॐ भयहरणं च भैरव:।
ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट
काल भैरव आरती….
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।