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31 मार्च 2019 को अनुदान संबंधित 23,832 करोड़ रुपये का हिसाब-किताब यानी उपभोग प्रमाणपत्र (यूसी) विभागों को दे देना था। UTTAR PRADESH के दर्जनों विभागों का आलम यह है कि सरकार से सहायता अनुदान लेने के बावजूद खर्च का हिसाब नहीं दे रहे हैं। यह खुलासा सीएजी (CAG) की वित्तीय वर्ष 2018-19 से संबंधित वित्त लेखे खंड-एक की रिपोर्ट से हुआ है। इसे विधान परिषद के पटल पर रखा गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की टिप्पणी है कि उपयोगिता प्रमाणपत्र न मिलने से अकाउंट में दिखाए गए खर्च को न ही अंतिम माना जा सकता है और न ही यह पुष्टि हो सकती है कि यह उसी मद में खर्च हुआ जिसके लिए दी गई थी.
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नियमों में व्यवस्था है कि जहां विशेष कार्यों के लिए सहायता अनुदान लिए जाते हैं, संबंधित विभागीय अधिकारी को धनराशि प्राप्त करने वालों से उपभोग प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए। यह विभागीय अधिकारी ही प्रमाणपत्रों का सत्यापन कर महालेखाकार को भेजेगा। अनुदान की राशि स्वीकृति की तिथि से 12 महीने में खर्च होनी चाहिए और सक्षम अधिकारी को 18 महीने के अंदर उपभोग प्रमाणपत्र महालेखाकार को भेज देना चाहिए।
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सीएजी की रिपोर्ट (CAG report) से खुलासा हुआ है कि 30 सितंबर, 2017 तक दिए गए अनुदानों के सापेक्ष 31 मार्च 2019 तक 63,366 अनुदानों का उपभोग प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। इन उपभोग प्रमाणपत्रों में 23832.12 करोड़ रुपये की राशि शामिल है। इनमें से 62903 प्रमाणपत्र 31 मार्च 2017 या उससे पहले के हैं। इन विभागों के ज्यादा उपभोग प्रमाणपत्र बकाया हैं समाज कल्याण (एससी के लिए विशेष घटक योजना) , शहरी विकास विभाग , प्राथमिक शिक्षा , माध्यमिक शिक्षा , पंचायतीराज , ग्रामीण विकास ।