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वरूथिनी एकादशी : हर संकट का अंत करेगी ये कथा
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गुरुवार दिनांक 12.04.18 को वैसाख कृष्ण ग्यारस के उपलक्ष्य में Varuthini Ekadashi का पर्व मनाया जाएगा। वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के ‘वरूथिन्’ से बना है, जिसका मतलब है प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी पर भगवान विष्णु के वराह अवतार स्वरूप का पूजन किया जाता है।
कुछ वस्तुओं का पूर्णतया निषेध है
- वरूथिनी एकादशी के व्रत में कुछ वस्तुओं का पूर्णतया निषेध है, इस दिन तेल युक्त भोजन, जुआ, दिन में निद्रा, पान, दातून, परनिंदा, क्रोध असत्य बोलना कार्य वर्जित हैं।
- रात्रि में भगवान का नाम स्मरण करते हुए जागरण किया जाता है और द्वादशी को तामसिक भोजन का परित्याग करके व्रत का पालन किया जाता है।
- इस व्रत में अन्न न खाने की वर्जना के साथ-साथ कांसे के बर्तन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए व मधु यानि शहद नहीं खाना चाहिए।
भक्त की हर संकट से रक्षा होती हैं
- इस एकादशी के बारे में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को बताते हैं कि नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक अत्यंत दानशील व तपस्वी था।
- एक दिन जंगल में तपस्या करते हुए राजा मान्धाता पर जंगली भालू ने हमला कर दिया व राजा का पैर चबा डाला। परंतु राजा तपस्या में लीन रहा।
- भालू राजा को घसीटकर जंगल में ले गया।
- राजा बहुत घबराया, परंतु उसने हिंसा न करके श्रीहरि से प्रार्थना की।
- उसकी पुकार सुनकर भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू का वध किया।
- श्रीहरि ने शोकाकुल राजा से कहा ‘हे वत्स! तुम मथुरा जाकर मेरे वराह अवतार के पूजन से वरूथिनी एकादशी का पालन करो।
- राजा ने मथुरा जाकर वैसा ही किया जिससे से वह शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया।
- वरूथिनी एकादशी के व्रत पूजन व उपाय से भौतिक सुख प्राप्त होते हैं, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है, पाप व ताप दूर होते हैं, अनन्त शक्ति मिलती है और भक्त की हर संकट से रक्षा होती हैं।
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