वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष मोहिनी एकादशी 23 मई दिन रविवार को है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने भी मोहिनी एकादशी का व्रत किया था।
आइए जानते हैं कि वैशाख शुक्ल एकादशी (Ekadashi) का मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) नाम कैसे पड़ा? पढ़ें इसकी कथा।
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कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हो रहा था तो उसके अंत में अृमत कलश निकला था। देवों के वैद्य धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उस अमृत कलश को असुर लेकर भागने लगे। उसे पहले पाने के लिए आपस में ही लड़ने लगे। देवता गण इस दृश्य को देखकर चिंता में पड़ गए कि यह अमृत कलश नष्ट न हो जाए और असुर सबसे पहले इसे ग्रहण करके अमरता न प्राप्त कर लें।
यह सब घटनाक्रम भगवान विष्णु भी देख रहे थे। तब उन्होंने उस अमृत कलश की सुरक्षा के लिए मोहिनी रूप धारण किया और असुर के समक्ष गए। उनके मोहिनी रूप को देखकर सभी असुर उन पर मोहित हो गए। अब अमृत के लिए लड़ाई बंद हो गई थी। तब मोहिनी रूप धारण किए विष्णु जी ने उनसे कलश ले लिया।
इसके बाद उन्होंने असुरों और देवताओं से कहा कि वे अलग-अलग पंक्ति में बैठ जाएं। वे सबको समान मात्रा में अमृत वितरित कर देंगे। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप से मोहित असुर एक पंक्ति में बैठ गए। देवता गण दूसरी पंक्ति में थे। भगवान विष्णु देवताओं को अमृतपान कराने लगे। तभी असुरों में एक राहु नाम का असुर था, जिसे लगा कि देवता सारा अमृत पी जाएंगे और असुर अमृत से वंचित हो जाएंगे।
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उसने देवता का रूप धारण किया और देव गण की पंक्ति में शामिल हो गया। उसको भगवान विष्णु अमृतपान करा रहे थे, तभी उसका वास्तविक रुप सामने आ गया। तब उन्होंने अपने चक्र से उसका गला काट दिया। अमृतपान के प्रभाव से उस असुर के सिर और धड़ राहु-केतु बन गए। भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप के कारण ही अृमत कलश की सुरक्षा हुई और देव गण अमृतपान कर पाएं।
जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी स्वरुप धारण किया, उस दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इस वजह से वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) पड़ गया। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।