इंदौर में अब देश का पहला ऐसा मामला सामने आया है जिसमें मरीज 90 दिन के इलाज के बाद ग्रीन फंगस (GreenFungus) का शिकार हुआ है।
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फेफड़ों में मिला ग्रीन फंगस
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने जानकारी देते हुए कहा है कि मरीज़ पिछले डेढ़ माह से इंदौर के अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे, लेकिन उनके फेफड़ों का 90 प्रतिशत इन्वॉल्वमेंट ख़त्म नहीं हो रहा था जबकि उनका हर मुमकिन इलाज किया गया था। इसके बाद अस्पताल ने मरीज़ के फेफड़ों की जांच की तो पता चला कि मरीज़ के लंग्स में ग्रीन रंग का एक फंगस मिला है। जिसे म्युकर नहीं कहा जा सकता, इसलिए ये म्यूकर मायकोसिस नहीं है। इस फंगस के हरे रंग के कारण उसे ग्रीन फंगस नाम दिया गया है।
क्या है ग्रीन फंगस?
एक्सपर्ट्स के अनुसार एसपरजिलस फंगस को ही आम भाषा में ग्रीन फंगस (GreenFungus) कहा जाता है। एसपरजिलस कई तरह के होते हैं। ये शरीर पर काली, नीली-हरी, पीली-हरी और भूरे रंग की देखी जाती है। एसपरजिलस फंगल संक्रमण भी फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। इसमें फेफड़ों में मवाद भर जाता है, जो इस बीमारी का जोखिम बढ़ा देता है। यह फंगस फेफड़ों को काफी तेज़ी से संक्रमित कर सकता है.
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किसे होता है ज़्यादा ख़तरा?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जो लोग पहले से एलर्जिक होते हैं, उन्हें ग्रीन फंगस (GreenFungus) से संक्रमित होने का ख़तरा ज़्यादा होता है। इसमें भी अगर संक्रमित मरीज़ को निमोनिया हो जाए या फंगल बॉल बन जाए तो ये बीमारी जानलेवा हो बन जाती है। इसके अलावा फंगल संक्रमण का ख़तरा उन लोगों में भी ज़्यादा होता है, जिनका कोई ट्रांसप्लांट हुआ है, जैसे- किडनी, लिवर आदि। इसके अलावा कैंसर के मरीज़, जिनकी कीमोथेरेपी चल रही है या जो डायलिसिस पर हों, उनमें भी फंगल संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा होता है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी कमज़ोर होती है। हालांकि, सभी लोगों को इससे घबराने और डरने की ज़रूरत नहीं है।
लक्षण
तेज़ बुखार
कमजोरी या थकान
नाक से खून बहना
वजन घटना
कैसे बचें?
फंगल इंफेक्शन्स को सिर्फ आसपास हर तरह की स्वच्छता, और साथ ही शारीरिक स्वच्छता बनाए रखने से ही रोका जा सकता है।
ज़्यादा धूल और संग्रहित दूषित पानी वाली जगहों से बचें। अगर आप इन क्षेत्रों से बच नहीं सकते हैं, तो बचाव के लिए मास्क ज़रूर पहनें।
ऐसे कामों से बचें जिसमें मिट्टी या धूल के पास रहना शामिल हो।
अपने चेहरे और हाथों को दिन में कई बार साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं, खासकर अगर वे मिट्टी या धूल के संपर्क में आए हों।
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