योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) पांच जुलाई को मनाई जाएगी। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi)
के दिन व्रत कर भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन और कथा सुनने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल मिलता है। सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के साथ ही योगिनी एकादशी का व्रत (Vrat) मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है
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महत्व
ज्योतिषाचार्य के अनुसार योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) का व्रत संसार रूपी समुद्र में डूबने वालों के लिए एक जहाज के समान है और सब प्रकार के पापों का नाश कर मुक्ति दिलाने वाला है। इसके प्रभाव से गो हत्या तथा पीपल के पवित्र वृक्ष को काटने जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। व्रती का कुष्ठ रोग, व्रत के प्रताप से दूर हो जाता है। 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को रखने से प्राप्त होता है। व्रती के समस्त मनोरथ पूर्ण करने और मोक्ष प्राप्ति में भी यह व्रत फलदायी है।
पूजन विधि
ज्योतिषाचार्य के अनुसार यह व्रत (Vrat) आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन प्रात:काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर, चंदन, रोली, धूप, दीप, पुष्प से पूजन और आरती करें। पूजन के बाद याचकों एवं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें। अगले दिन सूर्योदय के समय इष्ट देव को भोग लगाकर, दीप जलाकर और प्रसाद का वितरण कर व्रत का पारण करें।
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पौराणिक कथा
पंडित ने बताया कि मान्यता के अनुसार स्वर्गलोक के अलकापुरी नगर के कुबेर नामक राजा भोलेनाथ का बड़ा भक्त था। चाहे जो परिस्थिति हो भगवान की पूजा निश्चित करता था। वहीं हेम नामक माली प्रतिदिन पूजा के लिए फूल देता था। एक दिन फूल तोड़कर ले आया लेकिन पूजा में समय है, यह सोचकर पत्नी के साथ रमण करने लगा। इधर, जब पूजा बीतने के बाद भी माली फूल लेकर नहीं पहुंचा तो कुबेर राजा को क्रोध आया और उन्होंने पत्नी वियोग का उसे श्राप दे दिया। साथ ही, कोढ़ ग्रस्त होकर धरती पर विचरण करने का भी श्राप दे दिया। इधर, धरती पर आने के बाद कोढ़ और भूख-प्यास की पीड़ा के बावजूद वो नियमित रूप से भगवान की शिव की आराधना में जुटा रहा। एक दिन घूमते-घूमते महर्षि मार्कंडेय के आश्रम में पहुंच गया। महर्षि को उसकी स्थिति पर बड़ी दया आई और उन्होंने माली को योगिनी एकादशी करने को कहा। महर्षि के बताए अनुसार योगिनी एकादशी व्रत (Yogini Ekadashi Vrat) करने से माली को शाप से मुक्ति मिल गई और वह सुखपूर्वक जीवन जीने लगा।
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