नवरात्रि (Navratri) की पूजा में कुमारी कन्या के पूजन का विधान शास्त्रों में बताया गया है। कन्या के पूजन से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। दो वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है। प्रतिदिन एक कन्या का पूजन किया जा सकता है या सामर्थ्य के अनुसार तिथिवार संख्या के अनुसार कन्या की पूजा भी की जा सकती है।
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दो वर्ष की कन्या ‘कुमारी’
कुमारी पूजा के क्रम में श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम खण्ड के तृतीय स्कंध में उल्लिखित है कि दो वर्ष की कन्या ‘कुमारी’ कही गयी हैं, जिसके पूजन से दु:ख-दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु एवं बल की वृद्धि होती है।
तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’
इसी प्रकार तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही गयी है, जिसकी पूजा से धर्म, अर्थ, काम की पूर्ति, धन-धान्य का आगमन और पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है। जबकि चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ होती है, जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की प्राप्ति होती है।
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पांच वर्ष की कन्या ‘कालिका’
इसी तरह पांच वर्ष की कन्या ‘कालिका’ होती है, जिसकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है तथा छह वर्ष की कन्या ‘चंडिका’ होती है, जिसकी पूजा से धन तथा ऐश्र्वर्य की प्राप्ति होती है।
सात वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’
सात वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’ है, जिसकी पूजा से दु:ख-दारिद्र्य का नाश, संग्राम एवं विविध विवादों में विजय मिलता है, जबकि आठ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ के पूजन से इहलोक के ऐश्वर्य के साथ परलोक में उत्तम गति मिलती है और साधना में सफलता मिलती है।
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