बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है दशहरे (Dussehra) का त्यौहार. दशहरे के मौके पर रावण, कुंभकरण और मेघनाद का पुतला दहन किया जाता है. दशहरे पर राम और रावण के युद्ध और फिर रावण के अंत की कहानी तो आप सब ने सुनी होगी लेकिन आज हम आपको दशहरे से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां बताने जा रहे हैं. कुछ ऐसी कथाएं जिनकी वजह से दशहरे के त्योहार और भी ज्यादा खास हो जाता है.
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कैसे मिली भगवान श्रीराम को रावण को मारने की तरकीब
ये तो हम सभी जानते हैं कि जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया था, तब भगवान राम लंका पहुंचे थे और रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की थी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण को मारने की तरकीब भगवान श्रीराम को कैसे मिली. इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है. दरअसल भगवान श्री राम ने नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा की थी. दुर्गा मां को प्रसन्न करने में लिए भगवान राम ने पूरे 9 दिनों तक चंडी हवन किया जिसके बाद श्री राम को मां का आशीर्वाद मिला और रावण को मारने की तरकीब पता चली. इसके बाद श्री राम ने दसवें दिन रावण का अंत कर दिया और तबसे असत्य पर सत्य की जीत का ये पर्व मनाए जाने लगा. यही वजह है कि इस दिन को विजय दशमी के नाम से जाना जाता है.
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मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का अंत
एक ऐसा दौर था जब महिषासुर और उसके साथियों ने मिलकर पूरी दुनिया पर उत्पात मचा दिया था जिससे देवी देवता परेशान होने लगे थे और मानवों के अस्तित्व पर भी संकट गहराने लगा था. ऐसे में महिषासुर का विनाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को मिलाकर दुर्गा मां का सृजन किया. इन दानवों का खात्मा करने के लिए इस शक्तिरूपा के दस हाथ थे. हर हाथ में अलग अलग खतरनाक हथियार थे. मां दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण किया और ये युध्द 9 दिनों तक चला और फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया.
मां दुर्गा ने किया था महिषासुर का अंत
दशहरे से संबंधित एक ऐसी कहानी भी है जिसका किसी लड़ाई से कोई लेना देना नहीं है. ये कहानी एक युवा ब्राह्मण कौत्सा की है जो अपने गुरु ऋषि वारातन्तु से गुरु दक्षिणा के लिए लगातार आग्रह करता है. उसके गुरु ने उससे 1400 लाख सोने के सिक्के मांगे गुरु दक्षिणा में मांगे थे. कौत्सा ने गुरु दक्षिणा के लिए राजा रघु से मदद मांगी लेकिन तब तक राजा रघु अपना सारा खज़ाना दान में खत्म कर चुके थे. खुद मदद ना कर पाने पर राजा रघु ने धन के देवता कुबेर से मदद मांगी और कुबेर ने उनकी मदद करते हुए वृक्ष के आसपास सोने के सिक्कों की बारिश करवा दी. इस पूरे धन को राजा रघु ने कौत्सा को दे दिया और कौत्सा ने पूरा खजाना गुरु के चरणों में अर्पित कर दिया. गुरु ने जितनी दक्षिणा मांगी थी उतनी ही अपने पास रखी और बाकी का धन लौटा दिया. उसके बाद बचा हुआ धन अयोध्या की जनता में बांट दिया गया. यही वजह है कि आज भी दशहरे के दिन आपाती वृक्ष के पत्ते बांटे जाते हैं.
विजयदशमी के दिन ही पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल की थी
जुएं में अपना पूरा राजपाठ हार जाने के बाद पांडवों को 12 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास दे दिया गया था. कहा जाता है कि अज्ञातवास में अपनी पहचान छिपाने के लिए पांडवों ने शमी के पेड़ की जड़ों में अपने शस्त्र छिपा दिए थे और भेष बदलकर राजा विराट के पास पहुंच गए थे. उसी दौरान कौरवों ने राजा विराट के राज्य पर हमला कर दिया और इसी बीच पांडवों ने अपने शस्त्र फिर से निकाल लिए. विजदशमी के दिन ही पांडवों ने कौरवों पर विजय हासिल की थी. पांडव कौरवों पर विजय पाने के पीछे शमी की महत्वपूर्ण भूमिका मानते हैं यही वजह है कि दशहरे के दिन शमी की पूजा भी की जाती है.
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मां इसी मौके पर आई थीं घर वापस
सती माता की मौत के बाद शंकर भगवान बहुत ज्यादा क्रोधित थे. अगले जन्म में जब भोलेनाथ से माता पार्वती ने शादी कर ली, तब शंकर भगवान राजा दक्ष से आंख नहीं मिलाते थे. उस वक्त भगवान विष्णु ने भोलेनाथ से आग्रह किया कि वो दक्ष को माफ कर दें. उसके बाद से ही माता पार्वती अपने पुत्रों कार्तिकेय, गणेश और दो सहेलियों जया और विजया के साथ अपने माता पिता के घर जाने लगीं और तभी से मां के इस प्रवास को दुर्गोत्सव के रूप में मनाया जाता है.