हर साल 25 दिसंबर को दुनियाभर में एक साथ क्रिसमस (Christmas) दिवस मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि क्रिसमस दिवस यानी 25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्म हुआ है। अतः इस दिन प्रभु यीशु के जन्मदिन पर क्रिसमस मनाया जाता है। इस मौके पर चर्चों और घरों को सजाया जाता है। उनमें क्रिसमस ट्री और लाइट्स लगाए जाते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को क्रिसमस की शुभकामनाएं देते हैं। कुछ लोग अपने प्रियजनों को उपहार भी देते हैं। गोवा समेत देश के महानगरों में क्रिसमस की धूम रहती है।
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आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
प्रभु यीशु का जन्म
प्रभु यीशु की जीवनी का वृतांत ईसाई समुदाय के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल में है। इतिहासकारों की मानें तो प्रभु यीशु का जन्म इसरायल के खूबसूरत शहर बेथलेहेम में 4 ईशा पूर्व में हुआ था। उनकी माता का नाम मरियम और पिता का नाम यूसुफ था। यूसुफ पेशे से बढ़ई थे। ऐसा कहा जाता है कि परम पिता परमेशवर के संकेत पाकर यूसुफ ने मरियम से शादी की थी।
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प्रभु यीशु ने अपने पिता के कार्य में हाथ बंटाया और खुद बढ़ई बन गए। हालांकि, उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है। 30 वर्ष की उम्र में प्रभु यीशु को ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने लोगों को उपदेश दिया शुरू किया। उस समय यहूदी के कट्टर धर्मगुरुओं ने यीशु का पुरजोर विरोध किया और रोमन गवर्नर पिलातुस के समक्ष यीशु की बुराई और शिकायत की।
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रोमन गवर्नर पिलातुस को लगा कि अगर वह प्रभु यीशु को नहीं रोकते हैं, तो यहूदी क्रांति कर सकते हैं। इसके लिए प्रभु यीशु को मृत्यु दंड की सजा दी गई। गुड फ्राइडे पर प्रभु यीशु को शूली पर लटका दिया गया। मृत्यु के तीन दिन बाद कब्रगाह से प्रभु यीशु जीवित हो उठे। यहूदियों ने यह चमत्कार अपनी आंखों से देखा और प्रभु यीशु के शिष्यों ने प्रभु यीशु के उपदेश को जन-जन तक पहुंचाया। उस समय एक नवीन धर्म की स्थापना हुई, जिसे ईसाई धर्म कहा गया। कब्र से जीवित होने के 40 दिनों के बाद प्रभु यीशु सीधे स्वर्ग चले गए।
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