हिंदी पंचांग के अनुसार, बैशाख महीने में छिन्नमस्ता (Chhinmasta) जयंती मनाई जाती है। वहीं, गुप्त नवरात्रि में भी मां छिन्नमस्ता की पूजा-उपासना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में विद्या की दस महादेवियों की पूजा-उपासना की जाती है। ये दस महादेवियां मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां काली, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी, मां कमला हैं। इनमें छठी देवी छिन्नमस्ता है। सनातन शास्त्र में मां को सवसिद्धि पूर्ण करने वाली अधिष्ठात्री कहा जाता है। मां की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
आइए, मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा जानते हैं…
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कथा
किदवंती है कि एक बार मां भगवती मंदाकनी नदी में अपनी सहचरियों के संग स्नान-ध्यान कर रही थी। उसी समय मां की सहचरियों को तीव्र गति से भूख लगी। भूख की पीड़ा के चलते दोनों सहचरियों का चेहरा मलीन हो गया। जब दोनों को भोजन हेतु कुछ नहीं मिला, तो उन्होंने माता से भोजन की व्यवस्था करने की याचना की। सहचरियों की मांग को सुनकर मां बोली-हे सखियों! आप थोड़ा धैर्य रखें। स्नान करने के पश्चात आपके भोजन की व्यवस्था की जाएगी।
हालांकि, दोनों सखी तत्काल भोजन प्रबंध करने की मांग करने लगी। मां भगवती ने तत्काल अपने खडग से अपना सिर काट लिया। तत्क्षण मां भगवती का कटा सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा। इससे रक्त की तीन धाराएं निकली। दो धाराओं से सहचरियों आहार ग्रहण करने लगी। वहीं, तीसरी रक्त धारा से मां स्वंय रक्त पान करने लगी। उसी समय मां छिन्नमस्तिका का प्रादुर्भाव हुआ।
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महत्व
तंत्र मंत्र सीखने वाले साधकों के लिए गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है। मां की पूजा हेतु पूर्व से ही साधक तैयारियां करने लगते हैं। पूजा घर की साफ-सफाई की जाती है। मंदिरों को सजाया जाता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों तक उत्सव जैसा माहौल रहता है। मां को साधक को चिंतापूर्णी भी कहते हैं। इसका भावार्थ यह है कि मां चिंताओं को हर लेती हैं। ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में सच्ची श्रद्धा और भक्ति से जाने वाले भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।
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