ARTI PANDEY
नोएडा: अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ICAN 5 के छठे दिन की शुरुआत संस्कृति पर आधारित वर्कशॉप के साथ हुई। वर्कशॉप में संस्कृति को बचाये रखने पर चर्चा की गयी जो हमारे वर्तमान और हमारे भविष्य के लिए आवश्यक है। इस कार्यशाला का शीर्षक “कैप्चरिंग कल्चर ऑनलाइन – फ्रॉम पॉडकास्ट टू वोडकास्ट” था। डॉ विक्रांत किशोर, शिक्षाविद, लेखक, फिल्म निर्माता और फेलो, डीकिन यूनिवर्सिटी मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया ने इस कार्यक्रम का संचालन किया। सत्र का उद्घाटन करते हुए, डॉ अम्बरीष सक्सेना, प्रोफेसर और डीन, डीएमई मीडिया स्कूल और संयोजक, ICAN 5 ने कहा, “जितना अधिक लोग संस्कृति के बारे में जानेंगे, उतना ही संस्कृति का प्रचार प्रसार होगा जिससे संस्कृति और सुदृढ़ होगी। “
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डॉ किशोर ने उसी नोट पर अपनी कार्यशाला को आगे बढ़ाया और सांस्कृतिक पुनरुत्थान और प्रचार के नए तरीकों की चर्चा की। उन्होंने कहा, “पॉडकास्ट मरती हुई संस्कृतियों के लिए एक नए अवतार के तौर पर आया है और यह संस्कृति को युवाओं तक पहुँचाने का सबसे सुगम माध्यम के रूप में सामने आया है।” उन्होंने कहा कि वोडकास्ट अब YouTube और अन्य डिजिटल मीडिया के माध्यम से एक अधिक इमर्सिव ऑडियो-विज़ुअल एक्सपीरियंस उपलब्ध करवाते हुए इसे आगे बढ़ा रहा है।
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ICAN 5 के छठे दिन भी ‘फिल्म्स, टेक्नोलॉजी सपोर्टेड क्रिएटिविटी, एलजीबीटीक्यू एंड सेक्सिस्म इन मीडिया’ पर गहन चर्चा हुई। पूरी तरह से फिजिकल मोड में आयोजित इस सत्र की अध्यक्षता एमिटी यूनिवर्सिटी, उत्तर प्रदेश नोएडा के एमिटी स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन की एसोसिएट प्रोफेसर एवं हेड डॉ रूही लाल ठाकुर ने की। डॉ अम्बरीष सक्सेना ने कहा कि ICAN विविध विषयों पर ज्ञान साझा करने का एक प्रचिलित मंच है। उन्होंने कहा, “दुनिया के किसी भी सम्मेलन में विचार-विमर्श के लिए विषयों में इतनी विविधता देखने को नहीं मिलती जितनी ICAN में अक्सर देखने को मिलती है।”
प्रमोद कुमार पांडे, सहायक प्रोफेसर, मीडिया स्कूल, डीएमई ने डॉ बंदना पांडे, प्रोफेसर, मास कम्युनिकेशन स्टडीज डिपार्टमेंट, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के सहलेखन में ‘असेसिंग कम्युनिटी पर्सेप्शन्स रिगार्डिंग रोले ऑफ़ फेथ बेस्ड NGOs इन सोसाइटल ट्रांसफॉर्मेशन’ शीर्षक वाले पेपर के लिए सर्वश्रेष्ठ पेपर प्रस्तुतकर्ता का पुरस्कार जीता।
टेक्निकल सेशन 9 के वर्चुअल सत्र में शोधकर्ताओं ने ‘इम्प्लीकेशन ऑफ़ OTT कन्टेंट, बिंज वाचिंग एंड सेंसरशिप इश्यूज’ पर प्रकाश डाला। सत्र की अध्यक्षता डॉ फ्लोरेंस हांडिक, हेड ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और एंकरिंग, रॉयल स्कूल ऑफ कम्युनिकेशंस एंड मीडिया, असम रॉयल ग्लोबल यूनिवर्सिटी, गुवाहाटी, असम ने की। डॉ अम्बरीष सक्सेना ने ओटीटी सामग्री के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे वो भी कभी कभी बिंज वाचिंग कर लेते हैं और कैसे यह OTT कंटेंट को देखना एक अलग तरह का अनुभव होता है।
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यासीन बेन अबू, रिसर्च स्कॉलर, मीडिया स्टडीज, इब्न टोफेल यूनिवर्सिटी, मोरक्को ने ‘बिंज-वाचिंग एंड एकेडमिक अचीवमेंट: ए स्टडी ऑफ स्टूडेंट्स ऑफ लिबरल आर्ट्स यूनिवर्सिटी, यूएसए’ विषय पर पेपर प्रस्तुति की जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रस्तोता के तौर पर पुरस्कृत किया गया। .
ICAN अपने समृद्ध सत्रों के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक सत्र 5 जुलाई की पूर्व संध्या पर आयोजित किया गया था। सत्र का शीर्षक ‘जर्नलिज्म एंड मीडिया एजुकेशन इन थे यूनाइटेड स्टेट्स: पर्सपेक्टिव्स फ्रॉम इंटरनेशनल ग्रेजुएट स्टूडेंट्स’ था और यह एक वैश्विक पैनल डिस्कशन था। इस पैनल चर्चा को डॉ जतिन श्रीवास्तव, निदेशक, इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल जर्नलिज्म, ई.डब्ल्यू. स्क्रिप्स स्कूल ऑफ जर्नलिज्म, ओहियो यूनिवर्सिटी, यूएसएद्वारा संचालित किया गया।
देबिप्रीता राहुत, डॉक्टरेट छात्र, बॉलिंग ग्रीन स्टेट यूनिवर्सिटी; मिशेल माइकल, डॉक्टरेट छात्र, ओहियो विश्वविद्यालय और पूजा इचप्लानी, डॉक्टरेट छात्र, फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी पैनलिस्ट के रूप में सत्र में शामिल हुए। सत्र की शुरुआत करते हुए डॉ अम्बरीष सक्सेना ने कहा “हर देश में शोध करने के तरीके और शोध अनुभव भिन्न होते हैं। हम इस पैनल डिस्कशन के साथ आज अपने दर्शकों को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करने की उम्मीद करते हैं”।
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डॉ श्रीवास्तव ने चर्चा की शुरुआत तीनों विद्वानों के अनुभवों के साथ की। इसके अलावा उन्होंने सभी शोधकर्ताओं को पीएचडी के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालय चुनने का प्रमुख कारण पुछा। जवाब में, सुश्री देबिप्रीता ने कहा कि भारत में शिक्षण स्ट्रक्चर में एक अनम्यता होती है जो शोध छात्रों की रचनात्मकता को नियंत्रित करती है और इसीलिए “मैंने भारत में अपनी पीएचडी छोड़ दी और अमेरिका में डॉक्टरेट प्रोग्राम में शामिल हो गयी”।
डॉ सुमेधा धस्माना, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल द्वारा छात्रवृत्ति प्रक्रिया और फाइनेंस के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए सुश्री मिशेल ने उत्तर दिया कि अमेरिका में विश्वविद्यालय की वेबसाइटें सक्रिय हैं और समय पर जानकारी प्रदान करती हैं और “अधिकांश विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति देते हैं लेकिन यह एक समान नहीं होती,”।
पूजा ने बताया कि पीएचडी फंडिंग के लिए वह पूरी तरह से विश्वविद्यालय पर निर्भर थीं। उसने कहा, “एक अंतरराष्ट्रीय छात्र के रूप में, आप यहां गर्मी की छुट्टियों के दौरान कहीं भी काम कर सकते हैं और नियमित रूप से आप कुछ एक सीमाओं में काम कर सकते हैं।” डॉ सुस्मिता बाला ने कहा, “शोधकर्ताओं के लिए सुविधाओं की स्थिति दोनों देशों में बेहद भिन्न है; हालांकि, समर्पित शोधकर्ता ऐसे कारकों की परवाह किए बिना भी बेहतरीन काम कर लेते हैं।”