गणेश भगवान मंगलमूर्त हैं, सभी देवों में सबसे पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है क्योंकि वह शुभता के प्रतीक हैं। पंचतत्वों में गणेश जी को जल का स्थान दिया गया है। गणपति जी का पूजन किए बिना कोई भी कार्य सम्पन्न नहीं होता। भगवान श्री गणेश असीम सुखों को प्रदान करते हैं। गणेश चतुर्थी को भगवान गणपति जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का पूजन किया जाता है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी और संकट से मुक्ति दिलाने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है।
संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी विघ्न बाधाएं दूर होती हैं। बृहस्पतिवार, 3 मई को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत आ रहा है।
व्रत विधि
- भगवान गणेश जी के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास रखते हैं। भगवान गणपति जी जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं।
- इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
- सर्वप्रथम व्रत करने वाले को चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिएं।
- इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करे तो विशेष लाभ होता है।
- श्री गणेश जी की पूजा करते समय व्रती को अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
- तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठ कर भगवान गणपति जी का पूजन करें।
- विधिवत प्रकार से गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
- पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्री गणेश जी की आराधना करनी चाहिए।
- भगवान गणेश जी को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डू तथा मोदक का भोग लगाना चाहिए।
- सिद्ध-बुद्धि सहित महागणपति जी आपको नमस्कार है, इस वाक्य के साथ नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित करना चाहिए।
व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की पढ़ें कथा
- सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़ें अथवा सुनें और सुनाएं।
- तत्पश्चात गणेश जी की आरती करें।
- विधिवत तरीके से बप्पा की पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ‘श्री गणेशाय नम:’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नमः’ की एक माला यानी 108 बार गणेश मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए।
- यदि कोई इस दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जाप करता है तो निश्चय ही उसे समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।