Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम मामले में कहा है कि डाइंग डिक्लरेशन (Dying Declaration) यानी मरने से पहले दिए गए बयानों पर भरोसा करते समय अदालतों को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. भले ही कानून ये अनुमान लगाता है कि ये सच होते हैं.
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Supreme Court साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युपूर्व दिए गए बयानों पर भरोसा करने के लिए कारक भी बताए हैं. निचली अदालतों के समवर्ती निष्कर्षों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस बात से सहमत नहीं था कि केवल मृत्युपूर्व दिए गए बयानों के आधार पर दोषसिद्धि को बरकरार रखा जा सकता है.
Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता-दोषी के खिलाफ अपना मामला उचित संदेह से परे साबित कर दिया है. इसलिए, हम इन अपील को स्वीकार करते हैं और अपीलकर्ता-दोषी को उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी करते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को इन कारकों पर विचार करने को कहा है -(Supreme Court)
क्या बयान देने वाला व्यक्ति मृत्यु की आशा में था?
क्या मृत्यु पूर्व घोषणा यथाशीघ्र की गई थी?
क्या इस बात पर विश्वास करने का कोई उचित संदेह है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान मरने वाले व्यक्ति को सिखाया गया था?
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Supreme Court क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान पुलिस या किसी इच्छुक पक्ष के कहने पर प्रेरित करने, सिखाने या नेतृत्व करने का परिणाम था?
क्या बयान ठीक से दर्ज नहीं किया गया?
क्या मृत्यु पूर्व घोषणाकर्ता को घटना को स्पष्ट रूप से देखने का अवसर मिला था?
क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान पूरे समय एक जैसा रहा है?
क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान अपने आप में मरने वाले व्यक्ति की उस कल्पना की अभिव्यक्ति है?
क्या मृत्यु पूर्व दिया गया बयान स्वयं स्वैच्छिक था?
एकाधिक मृत्युपूर्व बयानों के मामले में, क्या पहला सत्य को प्रेरित करता है और दूसरे मृत्युपूर्व बयानों के अनुरूप है?
क्या चोटों के अनुसार मृतक के लिए मृत्यु पूर्व बयान देना असंभव था?
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ये था मामला (Supreme Court)
दरअसल, इरफान को अपने दो भाइयों और अपने बेटे की हत्या में दोषी ठहराया गया था. आरोप है कि उसने सोते समय आग लगा दी और उन्हें कमरे में बंद कर दिया. अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि यह इरफ़ान के दूसरी बार शादी करने के इरादे पर असहमति के कारण हुआ था. जबकि तीनों को पड़ोसियों और परिवार के अन्य सदस्यों ने बचाया और अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अंततः उन्होंने दम तोड़ दिया. एक ने अस्पताल में भर्ती होने के दो दिनों के भीतर और अन्य दो ने एक पखवाड़े से भी कम समय के बाद दम तोड़ दिया. हालांकि पुलिस तीन पीड़ितों में से दो के मृत्युपूर्व बयान दर्ज करने में कामयाब रही, जो अभियोजन पक्ष के मामले का मुख्य आधार बन गया. दो मृत्युपूर्व बयानों के आधार पर, सत्र अदालत दोषी करार देने के फैसले पर पहुंची, जिसे बाद में बयानों में कोई विसंगति नहीं पाए जाने के बाद 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था.
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