Garba History: नवरात्र (Navratri) और गरबा-डांडिया का एक-दूसरे से गहरा रिश्ता है। हम में से कई लोगों को गरबा काफी पसंद होता है, लेकिन बेहद कम लोग ही इसके इतिहास के बारे में जानते हैं। आज नवरात्र के मौके पर हम आपको बताएंगे गरबा से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में, जिसके बारे में शायद ही आपने कभी सुना होगा। Shardiya Navratri 2023
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क्या है गरबा? (Garba History)
गरबा एक प्रकार का लोकनृत्य है, जिसकी शुरुआत से गुजरात से हुई थी। यह न सिर्फ एक धार्मिक, बल्कि सामाजिक कार्यक्रम भी है, जिसे मुख्य रूप से नवरात्र के त्योहार के मौके पर किया जाता है। इस नृत्य की शुरुआत गुजरात के गांवों से हुई थी, जिसे लोग गांव के केंद्र में सामुदायिक सभा स्थलों पर करते थे। इस नृत्य की खास बात यही है कि गरबा दुनिया का सबसे लंबा और सबसे बड़ा नृत्य उत्सव है।
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नवरात्र का महत्व
नवरात्र (Navratri) हिंदू धर्म प्रमुख त्योहार है, तो मुख्य रूप से मां दुर्गा को समर्पित है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार को कई तरीकों से मनाया जाता है। बात करें गुजरात की तो, नवरात्र को यहां श्रद्धा और पूजा के रूप में नौ रातों तक नृत्य के साथ मनाया जाता है। यहा महिलाएं और पुरुष शाम से शुरू होकर देर रात तक मां दुर्गा के इस पर्व का जश्न मनाते हुए आदिशक्ति के सम्मान में नृत्य करते हैं। गरबा (Garba) गुजरात में नवरात्र के दौरान आकर्षण का केंद्र रहता है। हालांकि, यह लोकनृत्य सिर्फ नवरात्र में ही नहीं, बल्कि विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों जैसे शादियों और पार्टियों के दौरान भी किया जाता है।
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नारीत्व का सम्मान करता है गरबा
आमतौर पर लोग इस नृत्य को खुशी और उत्सव से जोड़कर देखते हैं। हालांकि, इसका असल अर्थ कुछ और है। दरअसल, गरबा जिसे गरबो के नाम से भी जाना जाता है, प्रजनन क्षमता (Fertility) का जश्न मनाता है और नारीत्व (Womanhood) का सम्मान करता है। बात करें इसके नाम की, तो इस नृत्य का नाम “गरबा” संस्कृत शब्द गर्भ से लिया गया है।
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कैसे हुई गरबा की शुरुआत?
गुजरात में इस नृत्य का अपना अलग महत्व भी है। दरअसल, यहां पर परंपरागत रूप से लड़की के पहले मासिक धर्म और बाद में, उसकी शादी के मौके पर इस नृत्य को किया जाता है। इसके अलावा नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र उत्सव के दौरान भी इसका आयोजन किया जाता है। इसके अलावा कुछ पुराणों में गरबा और इससे मिलते-जुलते नृत्यों को जिक्र मिलता है। हरिवंश पुराण में दो लोकप्रिय नृत्यों का जिक्र मिलता है- दंड रसक और ताल रसक, जिसे गुजरात में यादव द्वारा किया जाता था।
इसके अलावा हरिवंश पुराण के एक अन्य अध्याय में भी एक नृत्य का जिक्र मिलता है, जिसमें महिलाएं ताली बजाकर डांस करती है। ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य शैली सोलंकी (AD942-1022) और वाघेला राजवंशों (AD1244-1304) के शासनकाल के दौरान विकसित हुई थी।
गरबा की पौराणिक कथा
गरबा की उत्पत्ति से जुड़ी एक पौराणिक कहानी भी काफी मशहूर है। माना जाता है कि राक्षसों के राजा महिषासुर को ब्रह्म देव से मिले वरदान मिला था कि कोई भी पुरुष उसे कभी नहीं मार सकेगा। यह वरदान मिलने के बाद से ही महिषासुर ने तीनों लोक में तबाही मचा रखी थी। यहां तक कि देवता भी उसे हराने में असमर्थ थे। ऐसे में महिषासुर से आतंक से पीड़ित देवता गण मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे और इस विषय के समाधान पर चर्चा करने के बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति से मां दुर्गा का अवतरण हुआ।
अपनी उत्पत्ति के बाद 9 दिनों तक लगातार युद्ध करने के बाद देवी दुर्गा ने राक्षस राजा महिषासुर का वध कर उसके अत्याचारों को समाप्त किया, जिससे दुनिया की पूर्ण विनाश से रक्षा हुई। गरबा दुनिया में शांति लाने के लिए देवी की दृढ़ता और कड़ी मेहनत के लिए उन्हें धन्यवाद देने के लिए किया जाने वाला नृत्य है।
गरबा की पारंपरिक पोशाक
यह नृत्य आमतौर पर जोड़े में किया जाता है, जिसमें महिलाओं के साथ पुरुष हिस्सा लेते हैं। ऐसे में इस नृत्य को करने के लिए दोनों के लिए पारंपरिक पोशाक निर्धारित है। इस दौरान महिलाएं रंगीन और चमचमाती चनिया चोली के साथ कमरबंध या कपड़े के टुकड़े से बना पारंपरिक रंगीन और पैटर्न वाला कमरबंद पहनती हैं। इसे चुन्नी के ऊपर से पहना जाता है। इसके अलावा महिलाएं अपने इस लुक को पारंपरिक आभूषणों जैसे हार, अंगूठी, नथ, पायल आदि से पूरा करती हैं।
वहीं, पुरुष गरबा के लिए केविया और चूड़ीदार पहनते हैं। केविया लंबी बाजू वाला एक टॉप जैसा कपड़ा है, जिसमें सिला हुआ कोट और रंगीन वर्क होता है। चूड़ीदार तंग पतलून हैं जिन्हें पारंपरिक नृत्य करते समय अतिरिक्त आराम के लिए पैंट की तरह पहना जाता है।
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