HIGH COURT NEWS : इलाहाबाद हाईकोर्ट (HIGH COURT) ने कहा कि बालिग होने के आधार पर लिव इन रिलेशन में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा नहीं दी जा सकती। ऐसे रिश्तों का स्थायी भविष्य नहीं है।
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हालांकि, कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है। यह महत्वपूर्ण टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने की। याची जोड़ों की ओर से पेश वकील ने दलील थी कि दोनों अपना भला-बुरा समझते हैं। HIGH COURT
बालिग होने के कारण उन्हें अपनी मर्जी से साथ रहने का अधिकार है। उधर, याचिका का विरोध करते हुए युवती के परिजनों के वकील का कहना था कि लड़की का साथी पहले से ही यूपी गैंगस्टर एक्ट की धारा 2/3 के तहत एफआईआर का सामना कर रहा है। उसका कोई भविष्य नहीं है। निश्चित तौर पर वह लड़की की जिंदगी बर्बाद कर देगा।
कोर्ट ने कहा कि यह सही है की लिव इन रिलेशनशिप को सुप्रीम कोर्ट ने वैधता प्रदान की है, लेकिन मौजूदा मामले में यह एक टाइम पास रिश्ता है। अदालत इस बात से असहमत है कि महज 20-22 साल की उम्र में अस्थायी रिश्ते के प्रति गंभीरता से विचार कर सकेंगे। कोर्ट ने याची जोड़े को सुरक्षा देने से इन्कार कर दिया।
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बालिग जोड़ों ने संयुक्त रूप से याचिका दायर कर लड़की की चाची की ओर से लड़के के खिलाफ दर्ज अपहरण की एफआईआर को चुनौती देने के साथ सुरक्षा प्रदान करने की गुहार की गई थी।
याची युवती की दलील थी कि उसकी उम्र 20 वर्ष है। वह याची युवक से प्रेम करती है। बालिग होने के कारण उसे अपने प्रेमी के साथ स्वतंत्रता पूर्वक रहने का अधिकार है।
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