Kanpur GSVM Medical College : कानपुर मेडिकल कॉलेज (Kanpur GSVM Medical College) में स्क्रीनिंग के दौरान 14 थैलीसीमिया मरीजों में संक्रमण था। इस मामले में सरकार ने कठोर नीति अपनाई है। लेकिन यह आंकड़े पिछले दस वर्षों के हैं। आपको बता दें कि कानपुर मेडिकल कॉलेज में वर्तमान में करीब 200 मरीजों का उपचार किया जा रहा है। लेकिन, दवा न मिलने के कारण इन मरीजों की समस्या बहुत गंभीर है।
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यहां पर पिछले कई सालों से दवा का टोटा लगा हुआ है। प्राचार्य डॉ. संजय काला (Principal Dr. Sanjay Kala) ने बताया कि थैलीसीमिया के मरीजों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दवा आयरन चिलेटिंग है। यह दवा पूरे भारत वर्ष में सिर्फ दो कंपनियां ही बनाती है। यह दवा मेडिकल स्टोर में भी मिलना मुश्किल हो जाती है। इस कारण आम आदमी तक दवा का पहुंच पाना बड़ा मुश्किल होता है। इस दवा को हम लोग सीधे कंपनियों से बात करके खरीदते हैं। थैलीसीमिया मरीजों के उपचार के लिए कुल 35 लाख रूपये का बजट आता है। इसमें से हर वर्ष लगभग 19 लाख का बजट दवा के लिए होता है।
टेंडर डाला मगर किसी कंपनी ने नहीं किया आवेदन (Kanpur GSVM Medical College)
डॉ. संजय काला (Principal Dr. Sanjay Kala) बताते हैं कि दवा की सप्लाई के लिए नियम बनाए गए हैं। हम सब इसके तहत काम करते हैं। नियमानुसार पहले टेंडर लगाया जाता है। इसके बाद दवा कंपनी टेंडर के लिए आवेदन करती है।
उनका कहना था कि चार बार टेंडर डाले गए हैं, लेकिन अभी तक किसी ने आवेदन नहीं किया है। हम भी शासन को पत्र लिख चुके हैं। दवाओं को लेकर शासन से लगातार बातचीत होती है।
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कम बजट होने के कारण कंपनियां नहीं दिखाई रुचि
आपको बता दें कि कानपुर मेडिकल कॉलेज में कम मरीज होने के कारण कंपनियां इसमें रुचि नहीं दिखाती हैं, क्योंकि यहां कम आय होती है। वह इसलिए टेंडर में आवेदन नहीं करती।
एक मरीज में एक साल के अंदर एक लाख का आता है खर्च
डॉ. काला के मुताबिक, एक मरीज में एक साल के अंदर एक लाख रुपये का खर्च आता है, क्योंकि यह दवा काफी महंगी होती है। इस दवा का काम होता है कि यह शरीर में सीरम फेरिटिन को बढ़ने से रोकती है। यदि यह शरीर में ज्यादा बढ़ जाती है तो इसमें मरीजों को काफी समस्या होने लगती है। शरीर में सूजन आ जाती है और भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कानपुर देहात के मरीज की स्थिति भयावक
आपकों बता दें कि इस समय दवा न मिलने से कानपुर देहात के एक मरीज की स्थिति काफी बिगड़ गई है। उसका पेट काफी फूल गया है। इसके अलावा अब मरीज के खून चढ़ाने की भी स्थिति नहीं है।
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12 से 300 नैनोग्राम प्रति मिली मीटर होनी चाहिए
आपको बता दें कि पुरुषों में सामान्य फेरिटिन का स्तर 12 से 300 नैनोग्राम प्रति मिली मीटर के बीच होना चाहिए, लेकिन जब दवा नहीं मिलती है तो कुछ-कुछ मरीजों में यह स्तर 9000 तक पहुंच गया है।
वहीं महिलाओं की बात करें तो इसका स्तर 12 से 150 नैनोग्राम प्रति मिली मीटर होनी चाहिए। लेकिन जब थैलीसीमिया के मरीजों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन होता है तो उनका यह स्तर काफी तेजी से बढ़ता है, जिसको कंट्रोल करना जरूरी होता है।
बजट मिलता 19 लाख, जरूरत है दो करोड़
कानपुर मेडिकल कॉलेज को दवाइयां के लिए मात्र 19 लाख रुपए ही मिलते हैं, लेकिन 200 मरीजों के हिसाब से कम से कम दो करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है। इस कारण सभी मरीजों को दवा नहीं उपलब्ध हो पा रही है।
हर महीने 500 के लगभग होता है ब्लड ट्रांसफ्यूजन
डॉक्टरों को मुताबिक कुल 200 मरीजों वर्तमान में है। इनमें हर माह लगभग 450 से 500 ब्लड ट्रांसफ्यूजन होता है। एक मरीज को आयरन चिलेटिंग की दवा दिन में तीन बार खानी पड़ती है। आधी गोली से लेकर एक गोली तक का सेवन करना पड़ता है।
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