The Railway Men Review : द रेलवे मैन (The Railway Men) मुख्य रूप से भोपाल गैस लीक की घटना की पृष्ठभूमि पर आधारित सीरीज है, जो गुमनाम हीरोज की कहानी है। उनके जज्बे, हौसले, इंसानियत को दिखाती है, मगर साथ ही इंसानी फितरत के कुछ नकारात्मक पहलुओं पर भी टिप्पणी करती है।
यशराज फिल्म्स ने चार एपिसोड्स की मिनी सीरीज द रेलवे मैन The Railway Men Review के साथ ओटीटी स्पेस में अपना खाता खोल दिया है। सीरीज नेटफ्लिक्स पर शनिवार को स्ट्रीम हो चुकी है।The Railway Men Review
भारतीय इतिहास में साल 1984 दो दहलाने वाली घटनाओं के लिए याद किया जाता है- 31 अक्टूबर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जघन्य हत्या और उसके बाद सिखों के खिलाफ हुए दंगे। 3 दिसम्बर को भोपाल में हुई गैस त्रासदी। दोनों ही घटनाओं में हजारों मासूमों की जानें गयीं।
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क्या है कहानी?
घाटे से जूझ रही अमेरिकन कम्पनी यूनियन कार्बाइड में सुरक्षा को लेकर लगातार अनदेखी की जा रही है। कर्मचारी इसे समझते हैं, मगर मैनेजमेंट नुकसान का हवाला देकर उन्हें चुप करवा देता है। 2 दिसम्बर, 1984 की रात मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हो जाती है। शहरभर में गैस फैलने लगती है और इससे पहले कि लोग कुछ समझ सकें, लोग मरने लगते हैं।
भोपाल जंक्शन के स्टेशन मास्टर इफ्तेखार सिद्दीकी (केके मेनन) के सामने लोगों को बचाने की जिम्मेदार है, साथ ही इटारसी से भोपाल की ओर आ रही ट्रेनों को रोकना भी है, ताकि ट्रेन में आ रहे लोगों की जान बन सकें। रेलवे का कम्युनिकेशन सिस्टम खराब होने की वजह से चुनौती बढ़ जाती है।
जीएम सेंट्रल रेलवे रति पांडेय इटारसी जंक्शन पर औचक निरीक्षण के लिए पहुंचता है। भोपाल के हालात पता चलने पर वो कमान अपने हाथ में लेता है और भोपाल की ओर जाने वाली ट्रेंनों को रोकने की कोशिश करता है, मगर नाकामयाब रहता है। भोपाल जंक्शन और इस ट्रेन के यात्रियों की जान बचाने की चुनौती रेलवे कर्मियों के हाथों में है। आयुष गुप्ता ने सीरीज का लेखन किया है और शिव रवैल का निर्देशन हैं।
सीरीज की शुरुआत…
गैस लीक की घटना से 16 घंटे पहले 2 दिसम्बर 1984 से होती है। पहले एपिसोड के फर्स्ट हाफ में कहानी का स्टेज तैयार हो जाता है। लेखन की खूबी यह है कि इसमें संवादों के जरिए यूनियन कार्बाइड की लापरवाही और एक सम्भावित हादसे की रूपरेखा समझा दी गयी है।
मसलन, केके का किरदार अपने बेटे के यूनियन कार्बाइड में नौकरी करने के फैसले पर सवाल उठाता है तो समझ आ जाता है कि आम आदमी के मन में कम्पनी को लेकर क्या धारणा है। सीरीज यहां यह सवाल भी छोड़ती है कि जिस बात को आम इंसान समझ रहा था, सिस्टम उसे क्यों नहीं समझ सका। बहरहाल, 2 दिसम्बर को गैस लीक होती है और शहर में लाशें बिछना शुरू हो जाता है।
सीरीज का फोकस रेलवे कर्मियों पर है, लिहाजा घटनाओं का मुख्य केंद्र भोपाल जंक्शन ही रहता है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री और भोपाल शहर पर फोकस नहीं रखा गया है। स्टेशन मास्टर सिद्दीकी को इमाद रियाज और बलदेव से मदद मिलती है।
इमाद का रेलवे में लोको पायलट की नौकरी का पहला दिन होता है। वो पहले यूनियन कार्बाइड में ही काम करता था और अपने एक दोस्त को गैस लीक में मरते देखा था। तब से वो फैक्ट्री में सुरक्षा के प्रति लापरवाही को बाहर लाने के लिए स्थानीय पत्रकार कुमावत की मदद कर रहा है, जो यूनियन कार्बाइड में पल रहे खतरे को अपने अखबार के जरिए उठाता है।
भोपाल जंक्शन पर शातिर अपराधी बलदेव भी एक चोरी को अंजाम देने पहुंचता है, मगर जब गैस लीक के बाद स्टेशन पर लाशों के अम्बार लगते हैं तो मदद में जुट जाता है। एक तरफ ये किरदार है, जो अपराधी होने के बावजूद जिंदगी बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगाता है।
वहीं, वो सफेदपोश दंगाई हैं, जो ट्रेन में घुसकर मासूमों की जान लेना चाहते हैं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगों के इस पहलू को भोपाल गैस त्रासदी की घटना में गूंथा गया है। सीरीज के शुरुआती दृश्यों में इफ्तेखार सिद्दीकी के घर पर चल रहे टीवी में राजीव गांधी के भाषण की लाइन सुनाई देती है- जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन थोड़ी हिलती है। यह लाइन बहुत कुछ कह जाती है।
कैसी है सीरीज?
प्रोडक्शन विभाग ने यूनियन कार्बाइड और भोपाल जंक्शन के दृश्यों को जमाने में सराहनीय काम किया है, जिससे कथ्य को वास्तविकता के करीब दिखाने में मदद मिलती है। द रेलवे मैन इस साल रिलीज हुई बेहतरीन बेब सीरीज में शामिल हैं, जिसमें लेखन को अभिनय और निर्देशन का भरपूर साथ मिला है। लगभग एक-एक घंटे के चार एपिसोड्स की मिनी सीरीज भोपाल गैस त्रासदी की घटना के घाव पर इंसानियत के मरहम लगाने की सफल कहानी है।