Makar Sankranti 2024 : हिंदू धर्म में मकर संक्रांति की तिथि बहुत महत्वपूर्ण है। सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। कई स्थानों पर मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाते हैं, जबकि कुछ स्थानों पर इसे खिचड़ी के पर्व के रूप में मनाते हैं। Makar Sankranti 2024
इस अवसर पर गंगा में स्नान करना एक विधान है। सूर्य और शनि की कृपा पाने के लिए मकर संक्रांति के दिन कुछ दान करते हैं, जैसे गुड़, तिल और गर्म कपड़े। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन विधिपूर्वक भगवान सूर्य की पूजा करने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है और यश-कीर्ति बढ़ती है। Makar Sankranti 2024
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा करते समय विशिष्ट मंत्रों का जाप करना फलदायी होता है, जिससे भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। चलिए मकर संक्रांति पूजा के मंत्रों को जानते हैं। Makar Sankranti 2024
भगवान सूर्यदेव के मंत्र
1.एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
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2. ॐ ॐ ॐ ॐ भूर् भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
3. शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।”
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4. सूर्याष्टकम
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
5. सूर्य कवच
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।।
देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत्।।
शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:।।
ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित:।।
सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय:।।
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति।।
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