Pausha Putrada Ekadashi 2024 : पौष मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत रखा जाता है। 21 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी है। यह दिन श्रीकृष्ण को समर्पित है। साधक इस दिन एकादशी व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। साधक को इस व्रत के पुण्य-प्रताप से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। Pausha Putrada Ekadashi 2024
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विवाहित और निःसंतान महिलाएं पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करती हैं शास्त्रों में निहित है कि पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत करने से व्रती को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अगर आप भी अपने मनोवांछित फल को पूरा करना चाहते हैं, तो पौष पुत्रदा एकादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा के दौरान ये व्रत कथा जरूर पढ़ें। Pausha Putrada Ekadashi 2024
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व्रत कथा
द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण से पौष पुत्रदा एकादशी की कथा जाने की इच्छा जताई। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि एकादशी व्रत का अति विशेष महत्व है। इस व्रत की कहानी सुनने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। साथ ही सभी प्रकार की पीड़ा और कष्ट दूर हो जाते हैं। हे धर्मराज! राजा सुकेतुमान भद्रावती में राज्य करता था। वह एक अद्भुत दानवीर और सक्षम शासक था। सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। वह बेहद दानवीर और कुशल शासक था। सुकेतुमान के व्यवहार से प्रजा हमेशा खुश रहती थी।
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हालांकि, सुकेतुमान स्वयं चिंतित रहता था। राजा सुकेतुमान को कोई संतान नहीं थी। यह सोच राजा एक दिन वन की ओर प्रस्थान कर गए। वन में भटकते-भटकते राजा एक ऋषि के पास जा पहुंचे। उन्होंने ऋषि को शिष्टाचार पूर्वक प्रणाम किया। उस समय ऋषि ने राजा के दुखी मन को पढ़ लिया।
उन्होंने कहा-हे राजन! आप व्यथित प्रतीत (परेशान) हो रहे हैं। क्या कारण है कि आप नरेश होकर भी चिंतित हैं। तब राजा सुकेतुमान ने कहा- भगवान नारायण की कृपा से सबकुछ है, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है। अगर पुत्र ना रहा, तो मेरा पिंडदान कौन करेगा ? कौन पूर्वजों का तर्पण करेगा ?
ऋषि बोले- हर वर्ष पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर व्रत रख भगवान विष्णु की पूजा करें। इस व्रत के पुण्य प्रताप से आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। ऋषि के वचनानुसार, राजा और उनकी धर्मपत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। कालांतर में राजा सुकेतुमान को पुत्र रत्न की प्राप्त हुई। इससे भद्रावती नगर में खुशियों की लहर दौड़ गई।
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