Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बांदा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (CJM) भगवान दास गुप्ता के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा- उन्होंने व्यक्तिगत हित के लिए पद का गलत इस्तेमाल किया।
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बिल भेजने पर बिजली विभाग के अफसरों पर फर्जी केस कराया, इसलिए वह जज बने रहने लायक नहीं। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि निचली कोर्ट का कोई भी जज बिना जिला जज की परमिशन से FIR दर्ज न कराए। हालांकि, अति गंभीर मामलों में केस करा सकता है।
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बुधवार को जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और MAH इदरीसी की खंडपीठ ने लखनऊ के अलीगंज के अधिशासी अभियंता मनोज गुप्ता, SDO फैजुल्लागंज दीपेंद्र सिंह और संविदा कर्मी राकेश सिंह की याचिका स्वीकारते हुए यह आदेश दिया। साथ ही महानिबंधक को आदेश सभी अदालतों में सर्कुलेट करने को कहा। High Court
बांदा के CJM ने क्यों FIR कराई थी, पूरा मामला समझिए
CJM भगवान दास गुप्ता ने लखनऊ के अलीगंज में मकान खरीदा था। जिस पर लाखों रुपए बिजली बिल बकाया था। बिजली विभाग ने उन्हें वसूली की नोटिस भेज दी। इस पर भगवान दास ने मकान बेचने वाले और बिजली विभाग के अफसरों के खिलाफ कोर्ट में कंप्लेंट केस दाखिल किया।
कोर्ट ने सुनवाई के बाद SIT जांच के आदेश दिए। बिजली विभाग के अफसरों को समन भी भेजा, लेकिन बाद में वापस ले लिया था। SIT जांच में CJM के आरोप गलत साबित हुए। इसके बाद कोर्ट ने बिजली विभाग के अफसरों के खिलाफ FIR रद्द कर दी।
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हाईकोर्ट तक CJM कानूनी लड़ाई हारते गए
कोर्ट ने कहा- CJM कानूनी लड़ाई हाईकोर्ट तक हारते गए। इसके बाद भी बांदा कोतवाली में बिजली विभाग के अफसरों के खिलाफ इंस्पेक्टर दान बहादुर को धमका कर FIR दर्ज करा दी। कोर्ट ने आश्चर्य प्रकट किया कि 14 सालों में मजिस्ट्रेट ने सिर्फ 5 हजार रुपए ही बिजली बिल जमा किया।
पूछने पर कहा- सोलर पावर इस्तेमाल कर रहे हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों पर घूस मांगने का भी आरोप लगाया। वहीं बिजली विभाग के अफसरों ने कोर्ट में बताया- जज ने 201963 रुपए बिजली बकाए का भुगतान अब तक नहीं किया है।
जज भी अन्य अफसरों की तरह लोकसेवक
हाईकोर्ट ने कहा-एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अफसरों से नहीं की जा सकती। हालांकि, जज भी अन्य अफसरों की तरह लोकसेवक हैं। लेकिन, ये न्यायिक अधिकारी नहीं, जज हैं, जिन्हें भारतीय संविधान से संप्रभु शक्ति का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है। एक जज का व्यवहार और धैर्यशीलता संविधान के अनुरूप होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लहोटी की किताब का उल्लेख किया। कहा- जज जो सुनते हैं, देख नहीं सकते। जो देखते हैं, उसे सुन नहीं सकते। जज की अपनी गाइडलाइंस हैं। उनके फैसले ऐसे हों, जिसमें उनका व्यक्तित्व दिखाई दे।