Neelkanth Mahadev Temple : सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव (God Shiva) ने ब्रह्मांड को धारण कर रखा है। उनका न आदि है और न ही अंत है। अतः भगवान शंकर को अनादि कहा जाता है। Neelkanth Mahadev Temple
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शिव भगवान को बहुत से नामों से जाना जाता है। इनमें से एक महाकाल है। काल समय से है। भगवान शिव ने अनंत काल से पूरे ब्रह्मांड का पालन-पोषण करते हैं। धार्मिक विचार है कि भगवान शिव की पूजा करने वाले लोगों को मरने के बाद सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। मृत्यु पर भी शिवलोक मिलता है। चिरकाल में समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने विष धारण कर संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा की थी। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव ने विष के प्रभाव से पूर्णतः मुक्त होने के लिए किस स्थान पर कठिन तपस्या की थी? वर्तमान समय में इस स्थान पर प्रमुख तीर्थ स्थल है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
सनातन शास्त्रों में निहित है कि लक्ष्मी विहीन होने के बाद दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। स्वर्ग के देवता बेघर हो गए। उस समय सभी देवता सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे सहायता की याचना की। ब्रह्मा जी ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी। सभी देवता जगत के नाथ विष्णु जी के पास पहुंचकर आपबीती सुनाई। उस समय भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन की सलाह दी।
जगत के नाथ भगवान विष्णु ने आगे कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी। अमृत पान कर आप सभी देवता अमर हो जाएंगे। इसके पश्चात, दानव आपको कभी परास्त नहीं कर पायेंगे। हालांकि, एक चीज का ध्यान रखियेगा कि असुर अमृत पान करने में सफल न हो पाए। अगर कोई असुर अमृत पान करने में सफल हो जाता है, तो स्वर्ग से आप सबको हाथ धोना पड़ेगा। कालांतर में वासुकि नाग, मंदार पर्वत और दानवों की मदद से देवताओं ने समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति हुई। इसमें सबसे पहले विष निकला। विष देख सभी देवता एवं दानव भाग खड़े हुए।
समुद्र मंथन के समय त्रिलोकीनाथ उपस्थित थे। देवता एवं दानवों को भागता देख विष्णु जी मुस्करा ऊठे। सभी देवता जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाकर विष से मुक्ति दिलाने की याचना की। तब भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी महाकाल के पास जाएं। भगवान शिव ही आपको हलाहल से मुक्ति दिलाने में सहयोग करेंगे। सभी देवता विष लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे। उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने हेतु विषपान किया।
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जब भगवान शिव विष पान कर रहे थे। उस समय मां पार्वती ने महादेव के गले को दबाकर रखा था। अतः विष ग्रीवा यानी गर्दन से नीचे नहीं उतर पाया। हालांकि, विषपान के चलते भगवान शिव को गले में जलन होने लगी। तब देवताओं ने गाय के दूध से भगवान शिव का अभिषेक किया। साथ ही विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शिव ने चंद्रमा को शीश पर धारण किया। तब जाकर भगवान शिव को विष के प्रभाव से राहत मिली।
हालांकि, विष के प्रभाव से भगवान शिव को पूर्णतः मुक्ति नहीं मिली। समुद्र मंथन और देवताओं के अमृत पान के बाद भगवान शिव विष के प्रभाव से पूर्णतः मुक्ति पाने के लिए हिमालय में भ्रमण करने लगे। उस समय भगवान शिव ऋषिकेश स्थित मणिकूट पर्वत पहुंचे। इस स्थान पर हजारों वर्ष तक भगवान शिव ने तपस्या की। इसके बाद महादेव को विष से मुक्ति मिली। कई जानकारों का कहना है कि इस स्थान पर ही महादेव ने विषपान किया था। इसके लिए यह स्थान नीलकंठ कहलाता है। वर्तमान समय में ऋषिकेश में नीलकंठ मंदिर है।
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नीलकंठ मंदिर कैसे पहुंचे ?
नीलकंठ मंदिर (Lord Shiva Temple Connection) देवों की भूमि उत्तराखंड के देहरादून जिले के ऋषिकेश में है। यह मंदिर ऋषिकेश की पहाड़ी पर है। इस पहाड़ पर स्वर्ग आश्रम भी है। दिल्ली और उसके आसपास के लोग वायु मार्ग के जरिए देहरादून पहुंच सकते हैं। यहां से तीर्थयात्री सड़क मार्ग के जरिए पहले ऋषिकेश या सीधे त्रिवेणी घाट पहुंच सकते हैं। यहाँ से नीलकंठ मंदिर जा सकते हैं। वर्तमान समय में रोपवे की भी सुविधा है। नीलकंठ मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में गर्भगृह द्वार पर भगवान शिव का विषपान करने की विशाल पेंटिंग है। वहीं, मंदिर में शिवलिंग में भगवान शिव विराजित हैं।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। JAIHINDTIMES यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं।