Supreme Court News : 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए फिल्मों और टीवी में दिव्यांगजनों (PwDs) (persons with disabilities) के चित्रण के बारे में दिशा-निर्देश दिए हैं. ये फैसला फिल्म ‘आंख मिचोली’ के खिलाफ दायर याचिका पर आया है. फिल्म पर दिव्यांगों (disabled people) लोगों को गलत तरीके से दिखाए जाने का आरोप है.
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कोर्ट के दिशा-निर्देशों में ये बताया गया है कि फिल्मों में दिव्यांगजनों को नीचा दिखाने वाले शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. उन्हें सही तरीके से दिखाया जाना चाहिए और फिल्म बनाने में दिव्यांगजनों को भी शामिल किया जाना चाहिए.
दिलचस्प बात ये है कि उसी दिन रिलीज हुई एक दूसरी फिल्म ‘श्रीकांत’ की तारीफ की जा रही है जिसमें दिव्यांगता के मुद्दे को संवेदनशील तरीके से उठाया गया है.
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फिल्मों में अब ‘लंगड़ा’ और ‘अपंग” जैसे शब्द नहीं चलेंगे!
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि फिल्मों में अब ‘लंगड़ा’, ‘अपंग’ जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. ये शब्द दिव्यांगजनों के आत्म-सम्मान को गिराते हैं और समाज में उनके प्रति गलत सोच को बढ़ावा देते हैं. चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि फिल्मों में विकलांगों का मजाक उड़ाना बंद होना चाहिए, बल्कि उन्हें सही रूप में दिखाया जाना चाहिए.
कोर्ट ने ये भी कहा कि ‘ग्रस्त’, ‘पीड़ित’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी नहीं किया जाना चाहिए जो सिर्फ दिव्यांगता पर ध्यान देते हैं, ये नहीं बताते कि असल दिक्कतें समाज में मौजूद रुकावटों की वजह से हैं. कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं को ‘हमारे बारे में बिना हमारी राय लिए नहीं’ के सिद्धांत का पालन करने को कहा है. यानी फिल्म बनाते समय दिव्यांगजनों को भी शामिल किया जाए और उनसे सलाह ली जाए.
कोर्ट का कहना है कि फिल्म लेखकों, निर्देशकों, निर्माताओं और कलाकारों के लिए खास ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाएं. इन कार्यक्रमों में उन्हें बताया जाए कि फिल्मों में दिव्यांगजनों का गलत चित्रण समाज में उनके बारे में कैसी गलत धारणाएं फैला सकता है. साथ ही, उन्हें ये भी बताया जाए कि असल जिंदगी में दिव्यांग लोग कैसे रहते हैं और उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
हर फिल्म अलग होती है लेकिन ये जरूरी है कि फिल्म निर्माता उस दिव्यांगता को समझे, जिसे वो फिल्म में दिखाना चाहते हैं. रिसर्च करें, दिव्यांग लोगों से बात करें और उनकी कहानियों को समझने की कोशिश करें.
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दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानून कौन से हैं?
दिव्यांग लोगों को समाज में बराबरी का हक दिलाने के लिए कई कानून बनाए गए हैं. इनमें सबसे प्रमुख है- दिव्यांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम 2016 (Rights of Persons with Disabilities RPwD Act). ये अधिनियम 19 अप्रैल 2017 को लागू हुआ और इसने 1995 के कानून को रद्द कर दिया. इसका मुख्य लक्ष्य दिव्यांगजनों को समान अवसर, उनके अधिकारों की रक्षा और समाज में पूरी तरह से शामिल करना है.
इसके अलावा राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999 (National Trust Act) कानून भी दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करता है. ये कानून ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मंदबुद्धि और बहुदिव्यांगता से ग्रस्त लोगों के कल्याण के लिए बनाया गया था. ये अधिनियम राष्ट्रीय स्तर पर एक संस्था बनाने का प्रावधान करता है.
भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992 (Rehabilitation Council of India Act) कानून दिव्यांग लोगों के पुनर्वास पर ध्यान देता है. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 (Mental Health Care Act) कानून मानसिक दिव्यांगता से जूझ रहे लोगों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करता है.