Advertisements
Aarti Pandey
Delhi
रायबरेली के निराला नगर में रहने वाले आशुतोष द्विवेदी ने एक बार फिर से अपना परचम लहराया दिया है। यूपीएससी 2017 के पेपर में देश भर में उनकी रैंक 70वीं है। इतने टॉप रैंक पाने के बाद विनम्र आशुतोष इस कामयाबी का श्रेय अपने परिवार वालों को देते हैं। ये परशदेपुर के गोपालीपुर गांव के मूल निवासी हैं।
आशुतोष की आईएएस बनने की यह शायद जिद्द ही थी कि तीन दफा देश के सबसे बड़े पेपर को पास आउट करने के बाद भी कुछ कसक रह गई थी। कसक सिर्फ और सिर्फ आईएएस बनने की। और आखिर में सफलता ने उनके कदम चूमे और 2017 पेपर में उनकी रैंक 70वीं आई।
कुछ ऐसा रहा सफर
सिविल सर्विस परिक्षा 2014 में एसिस्टेंट सिक्यूरिटी कमिश्नर आरपीएफ
2015 में आईपीएस
2016 में आईआरएस
2017 में आईएएस
आशुतोष ने जो सपना देखा उसके लिए कई नौकरियां छोड़ते चले गए। रिटायर पशु चिकित्सा अधिकारी डा. महावीर प्रसाद द्विवेदी के छोटे पुत्र आशुतोष बचपन से ही होनहार रहे। प्रतापगढ़ के लालगंज अघारा में शीतलामऊ मांटेसरी स्कूल से हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद कानपुर के दीन दयाल उपाध्याय इंटर कालेज से उन्होंने इंटर पास किया। ग्रेजुएशन के दौरान ही कानपुर एचबीटीआई में उनका चयन हो गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बडे़ भाई डा संतोष कुमार द्विवेदी जामो में पशु चिकित्सा अधिकारी हैं।
कैरियर एचबीटीआई से किया शुरू
2017 में आशुतोष द्विवेदी ने 70वीं रैंक पाकर वह मुकाम हासिल कर ली, जिसकी उन्हें तलाश थी। अपने करियर में आशुतोष द्विवेदी ने एचबीटीआइ में कैंपस सेलेक्शन के दौरान मारुति उद्योग में नौकरी की। इसके बाद वे इसरो में वैज्ञानिक हो गए लेकिन वह मात्र 15 दिन ही नौकरी की। इसके बाद गेल में नौकरी की। यहां पर चार साल बिताए। उनकी आगरा व बरेली में तैनाती हुई। इसके बाद 2014 में आरपीएफ में सहायक सुरक्षा आयुक्त का पद मिला तो जिला खेल अधिकारी के पद पर भी नौकरी मिली लेकिन दोनों को उन्होंने छोड़ दिया। कारण मन और जेहन में आइएएस बनने का सपना हिलोरे मार रहा था। खुली आंखों से देखे गए इस सपने को पूरा करने के लिए आशुतोष ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा 2015 में दी तो 208वीं रैंक के साथ आइपीएस में सलेक्शन हो गया लेकिन मंजिल न मिल सकी तो आइपीएस रैंक को छोड़ दिया। आखिर में 2017 में मंजिल मिल ही गई।
Loading...