जानें, स्वास्तिक को धार्मिक रूप से क्यों महत्वपूर्ण मानते हैं….
स्वस्ति का अर्थ होता है – कल्याण या मंगल. इसी प्रकार स्वस्तिक का अर्थ होता है – कल्याण या मंगल करने वाला. स्वास्तिक एक विशेष आकृति है , जिसको किसी भी कार्य की शुरुआत के पूर्व बनाया जाता है. माना जाता है कि , यह चारों दिशाओं से शुभ और मंगल को आकर्षित करता है. चूँकि इसको कार्य की शुरुआत और मंगल कार्य में रखते हैं, अतः यह भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है. माना जाता है कि इसके प्रयोग से सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है. जिस पूजा उपासना में स्वस्तिक का प्रयोग नहीं होता, वह पूजा लम्बे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती.
स्वास्तिक का वैज्ञानिक महत्व क्या है?
- सही तरीके से बने हुए स्वस्तिक से ढेर सारी सकारात्मक उर्जा निकलती है
- गलत तरीके से प्रयोग किया गया स्वस्तिक भयंकर समस्याएँ भी दे सकता है
- यह उर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा , सुरक्षा करने में मददगार होती है
- स्वस्तिक की उर्जा का अगर घर , अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाय तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंता मुक्त रह सकता है
स्वास्तिक के प्रयोग के सही नियम क्या हैं?
- स्वास्तिक की रेखाएं और कोण बिलकुल सही होने चाहिए
- अगर स्वस्तिक को धारण करना है तो इसके गोले के अन्दर धारण करें
- लाल और पीले रंग के स्वस्तिक ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं
- भूलकर भी उलटे स्वस्तिक का निर्माण और प्रयोग न करें
किस प्रकार करें स्वास्तिक का प्रयोग?
- जहाँ जहाँ वास्तु दोष हो , या घर के मुख्य द्वार पर लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं
- पूजा के स्थान, पढ़ाई के स्थान और वाहन में अपने सामने , स्वस्तिक बनाएं
- एकाग्रता के लिए , सोने या चांदी में बना हुआ स्वस्तिक , लाल धागे में धारण करें
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर छोटे छोटे स्वस्तिक लगाने से, वे जल्दी ख़राब नहीं होते