Tirupati Balaji Mandir : तिरुपति बालाजी (Tirupati Balaji) जहां जगत के पालनहार भगवान विष्णु, श्री वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में विद्यमान है। इसलिए इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि कलयुग में भगवान यहां निवास करते हैं। Tirupati Balaji Mandir
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इसलिए चढ़ाए जाते हैं बाल
कथा के अनुसार, विष्णु जी ने कुबेर से धन उधार लिया था और यह कहा था कि कलयुग के समापन तक वह ब्याज समेत कर्ज चुका देंगे। तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि जो भी भक्त तिरुपति बालाजी मंदिर में कुछ चढ़ाता है, तो वह भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के ऋण को चुकाने में सहायता भी करता है। इसलिए भक्तों का बाल दान करना भी भगवान विष्णु का ऋण चुकाने में सहायता माना जाता है और ऐसा करने वाले भक्तों को भगवान कभी खाली हाथ नहीं भेजते।
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लक्ष्मी जी ने छोड़ा बैकुंठ धाम
एक बार विश्व कल्याण हेतु एक यज्ञ किया गया। तब यह सवाल उठा कि यज्ञ का फल किसे अर्पित किया जाए। इसका पता लगाने के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। तब भृगु ऋषि पहले ब्रह्मा जी के पास गए और उसके बाद भगवान शिव के पास पहुंचे, लेकिन उन्होंने दोनों को ही अनुपयुक्त पाया। तब वह बैकुंठ धाम गए, जहां विष्णु जी शय्या पर लेटे हुए थे।
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जब विष्णु जी ने ऋषि भृगु की बातों पर ध्यान नहीं दिया, तो उन्होंने आवेश में आकर विष्णु जी के वक्ष (छाती) पर ठोकर मार दी। क्रोधित होने के स्थान पर विष्णु जी ने अत्यंत विनम्र होकर ऋषि का पांव पकड़ लिया और बोले कि हे ऋषिवर! आपके पांव में चोट तो नहीं आई? यह सुनकर भृगु ऋषि प्रसन्न हुए और उन्होंने यज्ञ फल का उपयुक्त पात्र विष्णु जी को घोषित किया।
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श्रीनिवास और पद्मावती का हुआ विवाह
लेकिन इस घटना को लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु का अपमान समझा और परिणामस्वरूप वह बैकुंठ धाम छोड़कर पृथ्वी पर आ गईं। विष्णु जी ने उन्हें बहुत ढूंढा किन्तु वे नहीं मिलीं। अंतत: विष्णु जी ने माता लक्ष्मी को ढूंढने के लिए पृथ्वी पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया। विष्णु जी सहायता के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा जी ने भी गाय और बछड़े का रूप लिया और लक्ष्मी जी को ढूंढने लगे। लक्ष्मी ने भी पद्मावती के रूप में जन्म लिया। संयोग से घटनाचक्र ऐसा घूमा कि श्रीनिवास के रूप में विष्णु जी और पद्मावती के रूप में लक्ष्मी जी का विवाह हो गया।
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