Mahabharat Yudh: भगवान कृष्ण भी इस युद्ध के साक्षी रहे और उन्होंने धनुर्धर अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई। युद्ध से पहले दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच कुछ नियम तय हुए थे जिनके आधार पर युद्ध लड़ा जाना था। ऐसे में चलिए जानते हैं महाभारत युद्ध के दौरान किन नियमों का ध्यान रखा गया था। Mahabharat Yudh
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यह थे नियम
युद्ध में भाग ले रहे दोनों पक्षों के बीच तय आचार संहिता का पालन करना जरूरी था।
युद्ध केवल सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही लड़ा जाता था।
युद्ध में रथी -रथी (रथ पर सवार) से, हाथी पर सवार योद्धा-हाथी सवार योद्धा से और पैदल सैनिक-पैदल सैनकि से ही लड़ सकता था।
भय के कारण भाग जाने वाले या फिर शरण में आए हुए लोगों पर हमला नहीं किया जा सकता था।
एक वीर एक समय में केवल एक ही वीर युद्ध कर सकता था। कई योद्धा मिलकर एक ही योद्धा पर हमला नहीं कर सकते थे।
यदि युद्ध लड़ते समय कोई वीर निहत्था हो जाए, तो उसपर अस्त्र से वार नहीं किया जा सकता था, बल्कि उसे अपना शस्त्र उठाने का मौका दिया जाता था।
युद्ध में सेवक का काम कर रहे लोग, अर्थात घायलों की सेवा कर रहे लोगों पर हमला नहीं किया जा सकता था।
सूर्यास्त के बाद युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों दल एक-दूसरे से छल-कपट नहीं कर सकते थे।
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कब-कब टूटे नियम
महाभारत के युद्ध में कई बार इन नियमों का उल्लंघन भी हुआ। जिसमें अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु पर चक्रव्यूह में फंस जाने के बाद एक साथ कई लोगों ने हमला किया। उस समय वह निहत्था हो गया था। एक बार नियमों का उल्लंघन तब भी हुआ जब कर्ण अपने रथ का पहिया फंस जाने के कारण उसे रथ से उतरकर निकालने का प्रयास करता है, लेकिन इसी दौरान अर्जुन निहत्थे कर्ण पर बाण चला देता है।
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