(प्रगति का सुसाइड नोट अंग्रेजी में है, जिसे हम आपको हिंदी में पढ़ा रहे हैं।)
‘मैं आईआईटी में एक PHd स्टूडेंट हूं। अब लोगों को लगेगा कि स्टडी का प्रेशर होगा। मगर वह तो सबको सहना होता है। माना कि कभी-कभी थोड़ी डांट पड़ जाती थी, मगर इतनी तो नहीं कि मैं ये सब कर लूं। अगर मैं साधारण मानसिक स्थिति में होती तो सब हो जाता। पढ़ाई में इतनी तो कमजोर नहीं थी, बस ज्यादा मेहनत करना छोड़ दिया था, तो ऐसे में कोई भी सर को तो ब्लेम मत करना। हां, अगर वो लोगों को सबके बीच कम अपमानित करें तो थोड़ा अच्छा होगा।
बाकी समर्थ से भी कोई शिकायत नहीं थी, न घर वालों से और न फ्रेंड से। समर्थ के अलावा कोई इतना अपना लग ही नहीं रहा था। समर्थ को भी कितना बुलाऊं, वो मुझसे बहुत दूर रहता है। मुझे हमारी दूरी बिल्कुल पसंद नहीं थी।
यहां मेरा दोस्त आदिल था। समर्थ और आदिल तो थक गए होंगे मेरा लेक्चर और टेंशन सुन-सुनकर। क्यों ही रोऊं मैं उनके सामने भी, वो थोड़ी न ठेका लेकर बैठे हैं, मुझे खुश रखने का। खुशी का तो मुझे खुद ही सोचना चाहिए था। कम शब्दों में कहूं तो इसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बस इतना कह सकती हूं मैं उन भावनाओं से थक गईं हूं, जिन्हें महसूस करके मुझे दुख होता है। बनना तो काफी कुछ था पर अब कुछ है ही नहीं…’
मुझे नहीं पता कि मैं ये सब कर पाऊंगी या नहीं, इतने सालों में कितनी बार ये सब सोचा होगा। पर कभी इतना कठोर कदम नहीं उठा सकी। मुझे लगता है कि इस बार भी ऐसा न हो कि अभी ये सब लिखकर कल मैं इसे फाड़कर फेंक दूं और फिर से सोचूं कि अब जिंदगी में आगे क्या करना है।
अब बस जो होना था हो गया मेरा…मैं हर चीज से थक गई हूं, ये मेरी भावनाओं का अंत है। हंसती हूं तो हंसी नहीं आती। रोती हूं तो आंसू नहीं। आंसू आए तो ऐसा लगता है कि बस अगले ही पल सिर फट जाएगा।
उस दिन सबके सामने ही कैसे हंसा मैंने, वो भी कोई बात थी हंसने की? मन तो हुआ कि बोल दूं कि मिलने तो गई थी, पर आसान है क्या? 27 सालों का हिसाब कुछ शब्दों में कह देना।
कोई मुझे मेरे दुख के बारे में भी पूछे तो न बता पाऊंगी, क्या ही बताऊंगी, लाइफ में सब सामान्य ही तो है। कुछ काम अच्छा भी है, तो इतना तो बुरा नहीं कि ये सब करूं।
मुझसे कुछ भी नहीं हो पा रहा था…
PHd में हार्ड वर्क
काफी अच्छे से रहना
स्वीमिंग, सिंगिंग और एवरी थिंग
जिम और रनिंग
भावनात्मक स्थिरता के लिए कुछ दोस्त बनाना (जैसा कि मैडम कहती हैं) मेरा मतलब है जो उन्होंने भावनात्मक तौर पर साथ देने वाले दोस्त के लिए कहा।
एक ऐसा ब्वॉयफ्रेंड और जिंदगी भर साथ निभाने वाला मिला लेकिन लंबी दूरी ने वो काम भी खराब कर दिया।
एक दोस्त मिला आदिल, बस वही था जो मेरे दिमाग को शांत कर पाता।
हालांकि, मेरा परिवार बहुत सहयोगी रहा, लेकिन वह कभी भी मेरी खुशी का कारण नहीं रहा। मैं वाकई किसी को गलत नहीं ठहरा रही। अब हर चीज का अंत यही है जो करने जा रही।
Scrollable
कानपुर IIT में 26 साल की रिसर्च स्कॉलर प्रगति ने सुसाइड किया। उसका शव हॉस्टल में फंदे पर लटका मिला। तब न सिर्फ परिवार, बल्कि साथ पढ़ने वाले छात्र भी हैरान थे कि प्रगति ने अपनी जान क्यों दे दी? इस सवाल का जवाब एक दिन बाद मिला, जब प्रगति का 3 पन्नों का सुसाइड लेटर मिला है।
DCP वेस्ट राजेश कुमार सिंह कहते हैं – छात्रा का शुक्रवार को अंतिम संस्कार हो गया है। परिवार के लोगों ने जांच की मांग की है, लेकिन अब तक मामले में कोई लिखित प्रार्थना पत्र नहीं मिला। सुसाइड नोट से साफ है कि छात्रा अवसाद में थी और यह सुसाइड केस है। अगर फिर भी परिवार के लोग कोई आरोप लगाते हैं या प्रार्थना पत्र देते हैं तो जरूर जांच की जाएगी।
SOURCE : dainik bhaskar