Supreme Court : बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी कर कहा है कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (Child Marriage Prevention Act) को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है. Supreme Court
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एक एनजीओ (NGO) की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया है कि राज्यों के स्तर पर बाल विवाह निषेध अधिनियम का सही तरह से अमल नहीं हो पा रहा है, जिसके चलते बाल विवाह के मामले बढ़ रहे हैं.
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CJI ने कहा, हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून (PCMA) के उद्देश्य को देखा और समझा। इसके अंदर बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ। हमें जरूरत है अवेयरनेस कैंपेनिंग की।
बाल विवाह पर SC की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी करते हुए कहा, ‘माता-पिता द्वारा अपनी नाबालिग बेटियों या बेटों की बालिग होने के बाद शादी कराने के लिए सगाई करना नाबालिगों की जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन है.’ देश भर में बाल विवाह पर रोक से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि राज्यों से बातचीत कर ये बताये कि बाल विवाह पर रोक लगाने के कानून पर प्रभावी अमल के लिए उसकी ओर से क्या कदम उठाए गए हैं?
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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ CJI ने फैसला सुनाते हुए कहा…
‘दंड और अभियोजन के बजाय निषेध और रोकथाम पर जोर दिया जाना चाहिए. हमने कानून और समाजशास्त्रीय विश्लेषण के पूरे दायरे को देखा है. हमने बाल विवाह निषेध अधिनियम के उचित क्रियान्वयन के लिए विभिन्न निर्देश दिए हैं. सबसे अच्छा तरीका वंचित वर्गों, शिक्षा की कमी, गरीबी से ग्रस्त लड़कियों की काउंसलिंग करना है. एक बड़े सामाजिक ढांचे से मुद्दे को संबोधित करें. दंड का ध्यान नुकसान आधारित दृष्टिकोण पर है जो अप्रभावी साबित हुआ है. जागरूकता अभियान, फंडिंग अभियान, आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां दिशानिर्देश जारी किए गए हैं.
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