ईश्वर सदा एेसे लोगों पर रहते हैं मेहरबान
संसार में वेद सबसे पुराने ग्रंथ हैं और वैदिक धर्मी वेदों का प्रारंभ आदि सृष्टि में मानव सभ्यता के आरंभ के साथ ही मानते हैं। ईश्वर ने मनुष्यों के उपयोग के लिए जहां नाना प्रकार की वस्तुएं रचीं, वहां उन वस्तुओं का उचित उपयोग और व्यवहार बताने के लिए ऋषियों के हृदय में ज्ञान भी जगाया तथा उन ऋषियों का संसार में रहन-सहन, पदार्थ के उपयोग और व्यवहार का निर्देश इसी ईश्वर प्रेरित ज्ञान वेद के आधार पर किया।
जिस समय ऋषियों ने वेदों का संदेश और आदेश मनुष्यों को सुनाया, उस समय सब मनुष्य एक ही स्थान पर रहते थे। देश-विदेश और अनेक जातियों में मनुष्य बंटे नहीं थे। भाषा भी उस समय सबकी एक ही थी और वह भाषा है वेदों की भाषा।
आदि सृष्टि में भगवान ने मनुष्य को कर्मेन्द्रियां, ज्ञानेन्द्रियां मन और बुद्धि प्रदान की तो मनुष्य को स्वभावाभिव्यक्ति करने के लिए भाषा ईश्वर ने ही मनुष्य को प्रदान की।
वेद का अभिमत है:
बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्रं यत् प्रैरत नामधेयंदधाना:
अर्थात महान संसार के पालक प्रभु ने प्रथम नाम धारण करने वाली वाणियां प्रेरित की।
मनुष्य के लिए वेदों का आदेश क्या है:
प्रत्येक मनुष्य सहृदय बने। अन्य के कष्टों का अनुभव करे। किसी भी प्राणी को कष्ट में देखकर मनुष्य के हृदय में दर्द उत्पन्न हो।
सामंजस्य का आशय है कि सबके मन में सामंजस्य हो। सबके अधिकारों की रक्षा हो। सबके मन में संतोष हो सके ऐसी बात होनी चाहिए। एक-दो व्यक्तियों के ही मन की न होनी चाहिए।