Samudra Manthan: समुद्र मंथन के 11वें क्रम में इस वृक्ष का निकलना अपरोक्ष रूप में यह सिद्ध करता है, जब जीवन में सफलता मिलने वाली होती है, तब वातावरण सुगंथित और शांतिपूर्ण हो जाता है। Samudra Manthan
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पारिजात वृक्ष (Parijat tree) का पुष्प दिव्य और अनेक औषधीय गुणों से युक्त और सुगंधित होता है। दस इंद्रियां होती हैं, जिनमें पांच कर्मेंद्रियां (हस्त,पाद, मुख, उपस्थ और गुदा) और पांच ज्ञानेंद्रियां (नेत्र, कर्ण, नासिका, जिह्वा और त्वचा) इनमें ज्ञानेंद्रियों के पांच विषय क्रमशः रूप, शब्द, गंध,रस और स्पर्श हैं। इनके ऊपर 11वां तत्व मन है।
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जिसका सत्प्रभाव अन्य साधकों को भी लाभान्वित करता है। पारिजात वृक्ष ज्ञान, भक्ति और समृद्धि का प्रतीक है। एक आध्यात्मिक साधक के लिए समृद्धि का तात्पर्य है, भगवद्भक्ति में आने वाले विक्षेप का स्वतः ही शमन हो जाना।
मदराचल की मथानी
जब हृदयरूपी सागर को परमार्थविचाररूपी मदराचल की मथानी से भगवद्भक्तिरूपी शेषनाग की डोरी से मथा जाता है, तब साधक स्वयं ही पारिजात के तुल्य होकर, भगवत्प्रसन्नार्थ निष्कामभाव से सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है तथा वह स्वयं भी प्रसन्न रहता और दूसरों को भी सुख-शांति प्रदान करता है।
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पारिजात वृक्ष को देवलोक से भगवान् श्रीकृष्ण द्वारका लाए, जिससे भूलोकवासी भी देवतुल्य सुख-समृद्धि का लाभ उठा सकें। सृष्टि के उषाकाल से ही भारतीय वैदिक और पौराणिक संस्कृति का स्वरूप सदा मानवीयमान बिंदुओं के संपोषण का हेतु बना हुआ है। भगवत्प्रेम में निष्काम रति ही मोक्ष है, जब जीवन में साधक पारिजात की समुपलब्धि होती है, तब उसे भगवत्साक्षात्कारमाधुरी का अमृतपान शीघ्र ही सुलभ हो जाता है।
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