Mahabharata Story: महाभारत (Mahabharata) ग्रंथ में कई घटनाओं का जिक्र मिलता है, ऐसी ही एक कथा द्रोणाचार्य के जन्म से भी जुड़ी हुई है, जो काफी विचित्र है। चलिए जानते हैं इस कथा के बारे में। Mahabharata Story
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कैसे हुआ जन्म
कथा के अनुसार…
महाभारत के आदिपर्व में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार महर्षि भारद्वाज गंगा स्नान करने गए। वहां उन्होंने घृताची नामक एक अप्सरा को देखकर उसपर मोहित हो गए। उसे देखने के महर्षि मन में काम वासना जाग उठी, जिस कारण उनका वीर्य स्खलित हो गया। तब उन्होंने उस वीर्य को एक यज्ञ कलश में रख दिया, जिससे एक बालक का जन्म हुआ। यज्ञ कलश, जिसे द्रोण भी कहा जाता है, उससे उत्पन्न होने के कारण ही उनका नाम द्रोणाचार्य पड़ा।
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द्रोणाचार्य से जुड़ी खास बातें
द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपि से हुआ था, जिससे उन्हें अश्वत्थामा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। अश्वत्थामा के विषय में कहा जाता है कि उसे अमरता का श्राप भगवान श्रीकृष्ण से मिला था। द्रोण सभी वेदों के ज्ञाता भी थे। हालांकि महाभारत के युद्ध में अपने कर्तव्यों से बंधे होने के कारण द्रोणाचार्य ने कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ा, लेकिन उनका मन पांडवों की ओर ही था।
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धोखे से हुई मृत्यु
पांडव जानते थे कि उनके गुरु द्रोणाचार्य को युद्ध में परास्त करना एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में उन्होंने इसके लिए छल का सहारा लिया। दरअसल महाभारत युद्ध के दौरान भीम ने एक अश्वत्थामा नामक हाथी को मार डाला और जोर-जोर से कहने लगे कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया।
जब द्रोण ने इस बात की पुष्टि करने के लिए युधिष्ठिर से यह बात पूछी, तब युधिष्ठिर ने कहा कि “अश्वत्थामा मर चुका है” उनकी यह बात सुनते ही द्रोण शोक करने लगे और अपने रथ से उतरकर जमीन पर बैठ गए। इस मौके का फायदा उठाते हुए, पांडव सेना के सेनापति धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य की हत्या कर दी।
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