भो दीप ब्रह्मारूप स्त्वं, अंधकार निवारक:
इमां मया कृतां पूजा, गृहस्तेज: प्रवर्धय॥
गीता के अनुसार ब्रह्मा का प्रकाश इतना तेज है जिसके सामने एक हजार सूर्यों का प्रकाश भी कम पड़ता है। जिसके कारण साधारण आंखों से कोई मानव उसके दर्शन करने में सक्षम नहीं है। नेचुरल, प्रैक्टिकल एवं वैज्ञानिक दृष्टि से यह सिद्ध है कि सूर्य का प्रकाश प्रत्येक जड़ एवं चेतन में समाया हुआ है। दीपक में हम इसी तेल, घी और रूई का प्रयोग करते हैं।
दीपक के इस प्रकाश में सूर्य का तेज एवं अग्नि तत्व अवतरित होता है। सूर्य के तेज एवं प्रकाश में ब्रह्म प्रकाश होता है। अत: प्रत्येक साधक को दीपक का दर्शन ब्रह्म भाव से ही करना चाहिए।
दीपक में सत्, तम एवं रज का तालमेल है। दीपक चमकदार प्रकाश तेज (सत्) और श्याम वर्ण अंधकार (तम) का मेल-जोल होता है। दीपक के जलते ही अंधकार को प्रकाश (तेज) अपने में लीन कर लेता है। इस प्रकार रंगहीन (सत्) एवं श्याम वर्ण (तम) के मिश्रण से लौ में पीलापन आ जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार दो रंगों के मिलने से ही तीसरा रंग बनता है अर्थात दीपक की लौ में पीलेपन की झलक (सत्+तम) के दर्शन होते हैं। दीपक की लौ से यही अंधकार धुएं के रूप में लगातार निकलता रहता है। इसके बाद अपनी नज़र लौ की जड़ में डालिए तो वहां हल्के नीले रंग की आभा दिखाई देगी। वहीं तीसरा तत्व रज है। इस प्रकार दीपक की लौ में हमें सत्, तम, रज तीनों तत्वों के दर्शन हो जाते हैं।
यह सत्य है कि पंचभूतों (आकाश, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि) के नियमों पर चलाने वाला सूर्य ही है तथा यही हमारे शरीर के पंचभूतों को कंट्रोल करता है। सूर्य दर्शन का उद्देश्य यह प्रार्थना है कि सूर्य मेरे शरीर में मौजूद आपके इन्हीं पंच भूतों को कंट्रोल कर स्वास्थ्य लाभ की कृपा करें। दीपक भगवान सूर्य का स्वरूप है। परमात्मा तेज रूप में हम सबमें विद्यमान हैं तथा उसके प्रकाश की एक ज्योति हमारे माथे में स्थित है और हमें जीवन दान दे रही है।
इस ज्योति के निकल जाने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इसका प्रकाश हमारे अंदर हमेशा रहता है। आमतौर पर लोगों में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार अपनी-अपनी सीमाओं को पार कर अंधेरे का रूप धर हमारे अंदर तक छा जाते हैं और आत्म प्रकाश को उसी प्रकार रोक देते हैं जैसे सूर्य के प्रकाश को बादल।
इस से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि हम दीपक के प्रकाश को आत्म प्रकाश से कुछ समय के लिए जोड़े रहें ताकि प्रकाश का पुंज और तेज होकर कोहरे को पार करते हुए हमारे भीतर को प्रकाशित कर सके।
इससे हमारी भीतरी क्षमता बढ़ेगी और काम, क्रोध, लोभ आदि पर नियंत्रण करने में सक्षम हो जाएंगे तथा एक समय हमारा सारा अंतरंग आत्म प्रकाश से प्रकाशित हो जाएगा। जो हमारे जीवन की धारा की दिशा को सही मार्ग की ओर ले जा सकेगा। दीपक में ब्रह्म प्रकृति दोनों के दर्शन होते हैं। दीपक की रूई जड़ है तो तेल अथवा घी चेतन। जब रूई और तेल/घी को मिला कर प्रकाश युक्त कर दिया जाता है तो अंधकार दूर हो जाता है। चेतना घी एवं तेल के भीतर सूक्ष्म रूप में समाई होती है तथा दीपक के जलाने पर ही उससे हमारा प्रभु से मिलन होता है। आरती में दीपक ज्योति की ही अहम भूमिका होती है।