KANPUR COURT NEWS : मुठभेड़ को लेकर जहां पुलिस और सरकार पर तमाम गंभीर सवाल खड़े होते हैं, इसी बीच कानपुर कोर्ट ने एक फर्जी एनकांउटर के मामले में आरोपियों को बरी कर दिया। KANPUR COURT NEWS
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इतना ही नहीं फर्जी एनकाउंटर करने वाली नजीराबाद पुलिस टीम पर कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के साथ 3 माह में जांच रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं।
यह था मामला…
21 अक्टूबर 2020 को तत्कालीन नजीराबाद इंस्पेक्टर ज्ञान सिंह, दरोगा सुरजीत सिंह, हमराह मुकुंद पटेल, हेड कांस्टेबल ब्रजेश कुमार व चालक कांस्टेबल अमित कुमार के साथ मरियमपुर के पास वाहनों की चेकिंग कर रहे थे। इस दौरान काकादेव की ओर से आ रही बाइक को उन्होंने रोकने का प्रयास किया तो बाइक सवार दो युवक मरियमपुर अस्पताल की ओर भागने लगे।
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अर्मापुर केंद्रीय विद्यालय के पास पुलिस ने घेरा
उन्होंने पीछा किया तो बाइक सवार युवक विजय नगर चौराहे से मुड़ कर अर्मापुर इस्टेट की ओर भागने लगे। इस दौरान वायरलेस पर उन्होंने सूचना दी, तभी अर्मापुर इस्टेट गेट के पास वाहन तत्कालीन अर्मापुर थाना प्रभारी अजीत कुमार वर्मा खड़े थे, जिनको देख कर युवकों ने अर्मापुर इस्टेट गेट के अंदर बाइक मोड़ दी। 500 मीटर दूर तक पीछा करने पर पुलिस ने केंद्रीय विद्यालय के सामने चौराहे पर घेर लिया।
अर्मापुर थाने में दर्ज हुई थी रिपोर्ट
सरेंडर करने की बात कहने पर युवकों ने फायरिंग कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में दोनों युवकों के पैर में गोली लगी, जिसके बाद पुलिस ने उनको गिरफ्तार किया। पूछताछ में युवकों ने अपना नाम इंद्रा नगर कच्ची बस्ती निवासी अमित व कुंदन बताया था। तत्कालीन इंस्पेक्टर नजीराबाद ज्ञान सिंह ने अर्मापुर थाने में आरोपियों के खिलाफ अर्मापुर थाने में रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें जेल भेजा था।
कोर्ट में पेश में हुए थे 10 गवाह
मामला एडीजे–21 विनय सिंह की कोर्ट में ट्रायल पर था। अभियोजन पक्ष की ओर से कोर्ट में 10 गवाह पेश किए गए। ट्रायल के दौरान इंस्पेक्टर ज्ञान सिंह ने कोर्ट में बताया कि आरोपियों ने अर्मापुर थाना प्रभारी की पीठ पर फायर किया। साथ ही जिस स्कूल के पास पुलिस ने घटना का जिक्र किया, वहां कैंपस में गार्ड के साथ शिक्षक भी रहते हैं।
चौराहे का सीसीटीवी फुटेज पेश करने में फेल रही पुलिस
पुलिस किसी गार्ड व शिक्षक की कोर्ट में गवाही कराने में फेल हुई, साथ ही घटना का कोई स्वतंत्र गवाह भी पेश नहीं कर सकी। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि अगर कोई पुलिसकर्मी आरोपियों का पीछा कर रहा है, तो आरोपी सीने में फायर करेगा, न कि पीठ पर। साथ ही कहा कि पुलिस ने मरियमपुर चौराहे से आरोपियों के भागने की बात कही, जबकि चौराहा सीसीटीवी कैमरों से लैस है, चौराहे के सीसीटीवी भी पुलिस कोर्ट में नहीं पेश कर सकी।
कोर्ट ने कहा-पूरा घटनाक्रम संदिग्ध
बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में बताया कि घटना में कोई भी स्वतंत्र गवाह नहीं है, सभी गवाह पुलिस के हैं। वहीं फायरिंग के दौरान किसी भी पुलिसकर्मी को चोट नहीं आई, इसके साथ ही पुलिस के वाहनों में किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पाई गई। तमाम दलीलों के बाद कोर्ट ने कहा कि पूरा घटनाक्रम संदिग्ध है, जो आरोपियों को गलत फंसाने जाने की ओर संकेत कर रहा है।
मी लॉर्ड के सामने खुला कट्टे का खेल
कोर्ट में पूरा खेल तब खुला जब बरामद कट्टे में 13/5/2014′ लिखा दिखाई दिया बचाव पक्ष ने कहा कि यह कट्टा 2014 में किसी अभियुक्त से बरामद हुआ था। उसने 25 मई 2018 का कोर्ट का आदेश भी पेश किया, जिसम ऋषभ श्रीवास्तव के पास यही कट्टा बरामद दर्शाया गया था। बाद में कोर्ट ने ऋषभ को बरी कर दिया था।
उच्चस्तरीय जांच के दिए आदेश
कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि पुलिस टीम ने मालखाने से अवैध तमंचा निकाल कर आरोपियों के पास से बरामदगी दिखा कर फर्जी मुकदमा दाखिल किया है, जिसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। साथ की पुलिस कमिश्नर को मुठभेड़ करने वाली नजीराबाद पुलिस टीम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर तीन माह में आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
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