#KrishnaJanmashtami
जब भी प्रेम की मिसाल दी जाती है तो श्रीकृष्ण-राधा के प्रेम की मिसाल सबसे पहले आती है. राधा-श्रीकृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन कहा जाता है.
भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुईं जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को आमंत्रित किया. वृंदावन के लोग यह खबर सुनकर दुखी हो गए.
मथुरा जाने से पहले श्रीकृष्ण राधा से मिले थे. राधा, कृष्ण के मन में चल रही हर गतिविधि को जानती थीं. राधा को अलविदा कह कृष्ण उनसे दूर चले गए.
श्रीकृष्ण से विवाह के लिए वह अपने भाई रुकमी के खिलाफ चली गईं. इसके बाद ही कृष्ण रुक्मिनी के पास गए और उनसे शादी कर ली.
कृष्ण के वृंदावन छोड़ने के बाद से ही राधा का वर्णन बहुत कम हो गया.
जब कृष्ण वृंदावन से निकल गए तब राधा की जिंदगी ने अलग ही मोड़ ले लिया था. राधा की शादी एक यादव से हो गई. राधा ने अपने दांपत्य जीवन की सारी रस्में निभाईं और बूढ़ी हुईं, लेकिन उनका मन तब भी कृष्ण के लिए समर्पित था.
जब कृष्ण ने राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए. दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे. राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था. राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया.
धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं. उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की आवश्यकता पड़ी. आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए.
श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई, जब तक राधा आध्यात्मिक रूप से कृष्ण में विलीन नहीं हो गईं. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया.
हालांकि भगवान कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है, बावजूद वे राधा की मृत्यु को बर्दाश्त नहीं कर सके. कृष्ण ने प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में बांसुरी तोड़कर फेंक दी. उसके बाद से श्री कृष्ण ने जीवन भर बांसुरी या कोई अन्य वादक यंत्र नहीं बजाया. कहा जाता है कि जब द्वापर युग में नारायण ने श्री कृष्ण का जन्म लिया था, तब मां लक्ष्मी ने राधा रानी के रूप में जन्म लिया था ताकि मृत्यु लोक में भी वे उनके साथ ही रहे.