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पाकिस्तान को धूल चटाने वाला महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर इंसाफ की लड़ाई…
21 साल कानूनी लड़ाई लडऩे के बाद भी जीते जी नहीं मिल पाया इंसाफ
10 एकड़ भूमि पंजाब सरकार की नीति के तहत दिए जाने के लिए 1997 में दाखिलकी थी हाईकोर्ट में याचिका
ARTI PANDEY , Chandigarh
अपने 120 सैनिकों के साथ पाकिस्तान के 3000 सैनिकों और टैंक ब्रिगेड को मात देने वाले महावीर चक्र विजेता इंसाफ की 21 साल की लड़ाई लड़कर भी जीते जी इंसाफ नहींं पा सके। सेवानिवृत ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी की हाईकोर्ट में इंसाफ के लिए दाखिल याचिका अभी तक विचाराधीन है।
पंजाब सरकार ने 1976 में नीति बनाई थी जिसमें घोषणा की गई थी कि जिन्हे 1971 की भारत-पाक जंग के दौरान महावीर चक्र प्राप्त हुआ है उन्हें पंजाब सरकार 10 एकड़ भूमि देगी। ब्रिगेडियर चांदपुरी को पंजाब सरकार ने यह भूमि न देकर 7 अक्टूबर 1977 को उन्हें 30 हजार की इनामी राशि दे दी थी। बाद में सामने आया की पंजाब सरकार ने दो महावीर चक्र विजेताओं को 10 एकड़ भूमि जारी की है इनमे ब्रिगेडियर संत सिंह को 1978 में और ब्रिगेडियर एनएस संधु को वर्ष 1979 में भूमि जारी की गई। इस जानकारी के बाद ब्रिगेडियर चांदपुरी ने भी सरकार को रिप्रेजेंटेशन देते हुए भूमि की मांग की और कहा कि वो अपनी इनामी राशि ब्याज के साथ वापिस करने को तैयार हैं बदले में उन्हें 10 एकड़ जमीन दी जाए। कई बार सरकार से इस बारे में मांग करने के बाद भी जब सरकार ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने वर्ष 1997 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। हाईकोर्ट के नोटिस के जवाब में पंजाब सरकार ने कहा था की सरकार ब्रिगेडियर चांदपुरी को इनामी राशि जारी कर चुकी है, लिहाजा अब उन्हें जमीन नहीं दी जा सकती है। याचिका पर कोई भी निर्णय न निकलने के कारण हाईकोर्ट ने याचिका लोक अदालत को सुनवाई के लिए भेज दी थी। लोक अदालत में भी पंजाब सरकार अपने पक्ष पर कायम रहा। लिहाजा लोक अदालत में मामले में कोई सहमति नहीं बन पाने के कारण लोक अदालत ने 21 अगस्त 2015 को याचिका दोबारा हाईकोर्ट में ही सुनवाई के लिए भेजने के निर्देश दे दिए थे। इसके बाद ब्रिगेडियर चांदपुरी ने अपनी इस याचिका पर शीघ्र सुनवाई किये जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में अर्जी दायर की थी।
शीघ्र सुनवाई के आदेश फिर भी लंबा इंतजार
हाईकोर्ट ने ब्रिगेडियर चांदपुरी की याचिका पर 17 फरवरी 2016 को सुनवाई करते हुए उनकी याचिका पर जुलाई माह में सुनवाई किये जाने के आदेश दिए थे। लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी याचिका सुनवाई के लिए आई ही नहीं थी। लगभग ढाई वर्षों के बाद पिछले महीने 30 अक्तूबर को जब याचिका सुनवाई के लिए आई तो उस पर सुनवाई नहीं हो सकी। इसके बाद 17 नवंबर को ब्रिगेडियर चांदपुरी की मृत्यु हो गई थी।
सरकार और न्यायपालिका पर खड़े हुए सवाल
इस पुरे मामले ने सरकार और न्यायपालिका पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कैसे एक महावीर चक्र विजेता की याचिका पर 21 वर्षों के एक लम्बे अंतराल के बाद भी कोई फैसला नहीं आया है। पिछले ढाई वर्षों से तो उनकी याचिका पर एक भी सुनवाई नहीं हो पाई थी। मामले में उनके एडवोकेट अनुपम गुप्ता ने कहा कि एक तो सरकार की इस विषय पर नीति बदल चुकी है और दूसरा वह याचिका पर सुनवाई में देरी पर किसी को दोष नहीं देते क्योंकि हाईकोर्ट में पहले ही जजों के पास काम बहुत ज्यादा है।
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