Adhik Maas Purnima 2023: हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा तिथि पड़ती है। इस वर्ष 1 अगस्त को अधिक मास की पूर्णिमा है।
धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा उपासना करने से साधक द्वारा अनजाने में किए हुए सारे पाप कट जाते हैं। साथ ही साधक की आय, आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है। आइए, अधिक मास की पूर्णिमा तिथि का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व जानते हैं- Adhik Maas Purnima 2023 पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं और कथा सुनते हैं. उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. इस दिन स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, पाप से मुक्ति मिलती है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं कि सावन अधिक मास की पूर्णिमा कब है? स्नान और दान का मुहूर्त क्या है?
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शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों की मानें तो Adhik Maas Purnima 2023 पूर्णिमा तिथि 1 अगस्त को ब्रह्म मुहूर्त में (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) 03 बजकर 51 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 2 अगस्त को देर रात 12 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 1 अगस्त को अधिक मास की पूर्णिमा है। साधक 1 अगस्त को गंगा स्नान कर सकते हैं।
महत्व
Adhik Maas Purnima 2023 पूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान, पूजा और दान करने से साधक पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख और समृद्धि आती है। अतः पूर्णिमा तिथि पर श्रद्धालु गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना करते हैं।
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जानें अधिकमास कैसे पड़ता है?
हिंदू धर्म में सौर मास और चंद्र मास के हिसाब से ही गणनाएं होती है. चंद्र वर्ष कुल 355 दिन का होता है और सौर वर्ष 365 दिन का होता है. इसलिए एक साल में चंद्र और सौर वर्ष में 10 दिन का अंतर होता है. 3 साल का ये अंतर बढ़तक 10 से 11 दिन का हो जाता है. इस बार अधिकमास सावन में पड़ रहा है. जिससे सावन महीने एक महिने की बजाय दो महीने का होगा. इसलिए इस बार सावन सोमवार भी 4 की बजाय 8 होंगे.
पूजा विधि
Adhik Maas Purnima 2023 पूर्णिमा तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें और भगवान विष्णु को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें करें। प्रातः कालीन कार्यों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर नवीन वस्त्र धारण करें। इसके बाद सूर्य देव को जल में काले तिल और कुमकुम मिलाकर अर्घ्य दें। तदोपरांत, पंचोपचार कर भगवान विष्णु की पूजा फल, फूल, धूप-दीप, तिल जौ, अक्षत, चंदन और हल्दी से करें। भगवान विष्णु को खीर अति प्रिय है। अतः नारायण को केसर मिश्रित खीर का भोग लगाएं। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्र जाप करें। अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और धन वृद्धि की कामना करें। पूजा समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को भोजन कराएं और दान दक्षिणा दें।
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